महानिर्वाणी अखाड़े की स्थापना 16वीं शताब्दी में हुई थी। अखाड़े में 10 हजार से अधिक नागा संन्यासियों का दल है। 1774 में ज्ञानवापी की रक्षा के लिए औरंगजेब की सेना के साथ महानिर्वाणी के नागाओं ने युद्ध किया था। महानिर्वाणी अखाड़े के नागा साहस और पराक्रम के लिए जाने जाते हैं। अटल और आवाहन अखाड़े के संतों ने मिलकर धर्म की रक्षा के लिए महानिर्वाणी अखाड़े के रूप में अस्त्र- शस्त्र संचालन में निपुण नागाओं की सेना 16वीं शताब्दी के अंत में तैयार की।

सनातन धर्म के प्रतीक मठ-मंदिरों, तीर्थों को मुगल आक्रांताओं के हमले से बचाने के लिए महानिर्वाणी अखाड़े के नागाओं का शौर्य हमेशा याद रखा जाएगा। काशी में ज्ञानवापी की रक्षा के लिए वर्ष 1774 में महानिर्वाणी अखाड़े के नागाओं ने औरंगजेब की सेना और मनसबदारों के साथ युद्ध कर परास्त किया था। यही वजह है कि दशनामी संन्यासियों की परंपरा में महानिर्वाणी अखाड़े के नागाओं को वीर की उपाधि दी गई है। इस अखाड़े के नागा साहस और पराक्रम के लिए जाने जाते हैं। अटल और आवाहन अखाड़े के संतों ने मिलकर धर्म की रक्षा के लिए महानिर्वाणी अखाड़े के रूप में अस्त्र- शस्त्र संचालन में निपुण नागाओं की सेना 16वीं शताब्दी के अंत में तैयार की। बीएसएम स्नातकोत्तर महाविद्यालय रुड़की के प्राचार्य रहे डॉ. रामचंद्र पुरी ने दशनाम नागा संन्यासियों पर किए अपने शोध में इसका उल्लेख किया है।