प्रदेश में प्राकृतिक मौत के बाद आपसी संघर्ष और दुर्घटनाओं में सबसे ज्यादा हाथी मारे गए हैं। 74 हाथी विभिन्न दुर्घटनाओं में मारे गए। मानव के लिए खतरनाक साबित घोषित होने पर एक हाथी की मौत हुई तो 71 मामलों में हाथी की मौत का पता नहीं चल पाया।

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राज्य में 22 साल में हर साल औसतन 22 हाथियों की मौत हुई है। वर्ष 2001 से जुलाई 2022 के आंकड़ों के अनुसार इस दौरान कुल 481 हाथियों की मौत विभिन्न कारणों से हुई है। हालांकि, बीते 12 सालों में प्रदेश में हाथियों का कुनबा बढ़ा है।

प्रदेश में हाथियों की सबसे अधिक मौत प्राकृतिक कारणों से हुई है। इस दौरान वर्ष 2001 से लेकर अब तक कुल 174 हाथी प्राकृतिक मौत मरे। वहीं, आपसी संघर्ष में 86 हाथी मारे गए। जबकि विभिन्न दुर्घटनाओं में 74 हाथी मारे गए। इसके अलावा करंट लगने से 43, जहर खाने से एक हाथी की मौत हुई।

नौ हाथी पोचिंग में मारे गए तो 22 की ट्रेन से कटकर मौत हुई। मानव के लिए खतरनाक साबित घोषित होने पर एक हाथी की मौत हुई तो 71 मामलों में हाथी की मौत का पता नहीं चल पाया। इस तरह से बीते 22 सालों में अब तक कुल 481 हाथी मौत का ग्रास बने।

प्रदेश में 2026 हाथी, लिंगानुपात में सुधार
जहां देश में हाथियों की संख्या में लगातार गिरावट दर्ज की जा रही है, वहीं उत्तराखंड में इनकी संख्या में इजाफा हुआ है। वर्ष 2020 की हाथी गणना के अनुसार, राज्य में कुल 2026 हाथियों की मौजूदगी दर्ज की गई है। वयस्क नर और मादा हाथी का लैंगिक अनुपात 1:2.50 पाया गया है, जो एशियन हाथियों की आबादी में बेहतर माना जाता है।

प्रदेश में वर्ष दर वर्ष हाथियों का बढ़ रहा कुनबा 
वर्ष 2012 में 1559
वर्ष 2015 में 1797
वर्ष 2017  में 1839
वर्ष 2020 में 2026

दिसंबर तक जारी किए जा सकते हैं हाथी गणना के आंकड़े 
पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री, भूपेंद्र यादव ने बीते वर्ष हाथी दिवस पर 12 अगस्त हाथियों की गणना के आकलन के लिए होने वाली प्रक्रिया में अपनाए जाने वाली गणना अनुमान के प्रोटोकॉल को जारी किया था। इसके अनुसार, इस वर्ष दिसंबर के अंत तक हाथी गणना के आंकड़े जारी किए जा सकते हैं। इसके साथ ही बाघों की गणना के आंकड़े भी जारी किए जाएंगे।

By Tarun

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