बनारस में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह अगर सफल हो जाता तो देश 15 अगस्त 1781 में ही आजाद हो जाता। बनारस में ही महाराज चेतसिंह ने अंग्रेजों से पहला संग्राम किया था।

बनारस में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह अगर सफल हो जाता तो देश 15 अगस्त 1781 में ही आजाद हो जाता। बनारस में ही महाराज चेतसिंह ने अंग्रेजों से पहला संग्राम किया था। बगावत का आलम यह था कि वारेन हेस्टिंग्स को महिला वेश में पालकी में छिपकर बनारस से भागना पड़ा था। शिवाला घाट पर अंग्रेजों को सबसे पहला विद्रोह झेलना पड़ा और उसके कई अधिकारी बेमौत मारे गए।
नागरी प्रचारिणी सभा के ऐतिहासिक दस्तावेजों के अनुसार हेस्टिंग्स ने लिखा था कि यदि उस दिन चेतसिंह रामनगर न जाकर माधोदास के बगीचे पर हमला बोल देते तो मैं जरूर मारा जाता और चारों ओर बगावत फैल जाती है। बनारस के इतिहास पर शोध कर रहे अधिवक्ता नित्यानंद राय ने बताया कि 15 अगस्त 1781 को वारेन हेस्टिंग्स बनारस पहुंच गया था।
राजा चेतसिंह ने पांच लाख रुपये देने से किया था इंकार
उसने शहर में स्थित स्वामी बाग में कैंप किया। राजा चेतसिंह को खत लिखकर पांच लाख रुपये और दो हजार सवारों की मांग की। राजा के इंकार करने पर हेस्टिंग्स आपे से बाहर हो गया और रेजीडेंट मार्कहम को शिवालाघाट स्थित चेतसिंह के महल में जाकर कैद करने का आदेश दे दिया।