सनातन धर्म में माघ का महीना भगवान विष्णु की कृपा पाने के लिए श्रेष्ठ माना गया है। इस माह के कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी को षटतिला एकादशी कहा जाता है। इस साल 18 जनवरी,बुधवार को षटतिला एकादशी का व्रत रखा जाएगा। धार्मिक मान्यता के अनुसार इस एकादशी के दिन भगवान विष्णु के पसीने से उत्पन्न तिल का छह प्रकार से प्रयोग किया जाता है जिससे प्राणी को इस लोक में सभी सुख प्राप्त होते हैं एवं मरणोपरांत मोक्ष की प्राप्ति होती है। साथ ही इस एकादशी का व्रत करने से वाचिक, मानसिक और शारीरिक तीन तरह के पापों से मुक्ति भी मिलती है।
तिल से स्नान-
इस दिन प्रातः सर्वप्रथम स्नान वाले जल कुछ बूँद गंगाजल और तिल मिला लें और उसके बाद ‘ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः’ मंत्र का जप करते हुए स्नान करें। ऐसा करने से सुख-सौभाग्य की प्राप्ति होती है एवं आध्यात्मिक ऊर्जा का विकास होता है।तिल के तेल से मालिश –
षटतिला एकादशी के दिन व्रत करने वाले और न व्रत रखने वाले सभी को तिल के तेल से मालिश करना बहुत शुभ रहता है। ऐसा करने से शरीर निरोग होता है और सर्दी से उत्पन्न विकार दूर होते हैं।
इस दिन प्रातः सर्वप्रथम स्नान वाले जल कुछ बूँद गंगाजल और तिल मिला लें और उसके बाद ‘ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः’ मंत्र का जप करते हुए स्नान करें। ऐसा करने से सुख-सौभाग्य की प्राप्ति होती है एवं आध्यात्मिक ऊर्जा का विकास होता है।तिल के तेल से मालिश –
षटतिला एकादशी के दिन व्रत करने वाले और न व्रत रखने वाले सभी को तिल के तेल से मालिश करना बहुत शुभ रहता है। ऐसा करने से शरीर निरोग होता है और सर्दी से उत्पन्न विकार दूर होते हैं।
तिल से हवन-
शास्त्रों के अनुसार तिल से हवन करना बहुत शुभ बताया गया है।इस दिन हवन करने से पहले गाय के घी में काले तिलों को मिला लें और फिर ‘ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः’ मंत्र का जप करते हुए हवन करें।ऐसा करने से आर्थिक समस्याएं दूर होती हैं,समृद्धि आती है।सफ़ेद तिल से लक्ष्मी या श्री सूक्त का हवन करने से माता लक्ष्मी की अति शीघ्र कृपा होती है।
शास्त्रों के अनुसार तिल से हवन करना बहुत शुभ बताया गया है।इस दिन हवन करने से पहले गाय के घी में काले तिलों को मिला लें और फिर ‘ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः’ मंत्र का जप करते हुए हवन करें।ऐसा करने से आर्थिक समस्याएं दूर होती हैं,समृद्धि आती है।सफ़ेद तिल से लक्ष्मी या श्री सूक्त का हवन करने से माता लक्ष्मी की अति शीघ्र कृपा होती है।
तिलोदक-
इस दिन तिलोदक करते हैं यानि पंचामृत में तिल मिलाकर भगवान विष्णु को स्नान कराते हैं जिससे दुर्भाग्य दूर होता है। साथ ही इस दिन आप दक्षिण दिशा की ओर मुख करके पितरों को तिल मिश्रित जल का तर्पण करने से उनका आशीर्वाद मिलता है और परिवार में सुख-शांति और समृद्धि बनी रहती है।
इस दिन तिलोदक करते हैं यानि पंचामृत में तिल मिलाकर भगवान विष्णु को स्नान कराते हैं जिससे दुर्भाग्य दूर होता है। साथ ही इस दिन आप दक्षिण दिशा की ओर मुख करके पितरों को तिल मिश्रित जल का तर्पण करने से उनका आशीर्वाद मिलता है और परिवार में सुख-शांति और समृद्धि बनी रहती है।
तिल का दान-
शास्त्रों में उल्लेख मिलता है कि जो भी व्यक्ति इस दिन तिलों का दान करता है, उसे स्वर्ग की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि एकादशी के दिन जितने तिलों का दान किया जाता है, उतने ही पाप नष्ट हो जाते हैं और उतने ही सालों के लिए स्वर्ग लोक में स्थान प्राप्त होता है।काले तिल का दान करने से शनि दोष शांत होता है।
शास्त्रों में उल्लेख मिलता है कि जो भी व्यक्ति इस दिन तिलों का दान करता है, उसे स्वर्ग की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि एकादशी के दिन जितने तिलों का दान किया जाता है, उतने ही पाप नष्ट हो जाते हैं और उतने ही सालों के लिए स्वर्ग लोक में स्थान प्राप्त होता है।काले तिल का दान करने से शनि दोष शांत होता है।
तिल का सेवन-
इस दिन सायंकाल के समय तिल युक्त भोजन बनाकर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी को भोग लगाएं। साथ ही गरीब व जरूरतमंद को तिल से बनी हुई चीजों का भोजन कराएं। साथ ही व्रती को भी तिलयुक्त फलाहार करना चाहिए। ऐसा करने से भगवान विष्णु का आशीर्वाद मिलता है।
इस दिन सायंकाल के समय तिल युक्त भोजन बनाकर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी को भोग लगाएं। साथ ही गरीब व जरूरतमंद को तिल से बनी हुई चीजों का भोजन कराएं। साथ ही व्रती को भी तिलयुक्त फलाहार करना चाहिए। ऐसा करने से भगवान विष्णु का आशीर्वाद मिलता है।
षटतिला एकादशी का महत्व
शास्त्रों के अनुसार इस दिन तिल से बने हुए व्यंजन या तिल से भरा हुआ पात्र दान करने से अंनत पुण्यों की प्राप्ति होती है।पदमपुराण के अनुसार भगवान श्री कृष्ण,युधिष्ठिर को इस एकादशी की महिमा बताते हुए कहते हैं कि हे नृपश्रेष्ठ!माघ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी ‘षटतिला’ या ‘पापहारिणी’के नाम से विख्यात है,जो समस्त पापों का नाश करती है।जितना पुण्य कन्यादान, हजारों वर्षों की तपस्या और स्वर्ण दान से मिलता है, उससे अधिक फल षटतिला एकादशी करने से मिलता है। इस व्रत को करने से घर में सुख-शांति का वास होता है,नकारात्मक शक्तियां समाप्त होती हैं।
शास्त्रों के अनुसार इस दिन तिल से बने हुए व्यंजन या तिल से भरा हुआ पात्र दान करने से अंनत पुण्यों की प्राप्ति होती है।पदमपुराण के अनुसार भगवान श्री कृष्ण,युधिष्ठिर को इस एकादशी की महिमा बताते हुए कहते हैं कि हे नृपश्रेष्ठ!माघ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी ‘षटतिला’ या ‘पापहारिणी’के नाम से विख्यात है,जो समस्त पापों का नाश करती है।जितना पुण्य कन्यादान, हजारों वर्षों की तपस्या और स्वर्ण दान से मिलता है, उससे अधिक फल षटतिला एकादशी करने से मिलता है। इस व्रत को करने से घर में सुख-शांति का वास होता है,नकारात्मक शक्तियां समाप्त होती हैं।