जगदगुरु रामभद्राचार्य ने भार्गवराघवीयम, अरुंधति महाकाव्य, ब्रहृमसूत्र नामक प्रसिद्ध ग्रंथ लिखा है। उन्होंने संस्कृत व हिंदी में अपनी रचनाएं लिखीं। इन्ही रचनाओं के लिए उन्हें साहित्य का सर्वोच्च पुरस्कार ज्ञान पीठ पुरस्कार मिला है।

58वें ज्ञानपीठ पुरस्कार के लिए चुने गए रामभद्राचार्य ने अब तक 250 से अधिक पुस्तकों की रचना की है। भार्गवराघवीयम, अरुंधति महाकाव्य, ब्रह्मसूत्र उनके प्रसिद्ध ग्रंथ हैं। उन्होंने संस्कृत व हिंदी में अपनी रचनाएं लिखीं। इन्ही रचनाओं के लिए उन्हें साहित्य का सर्वोच्च पुरस्कार ज्ञान पीठ पुरस्कार मिला है।उन्हें पद्म विभूषण पुरस्कार सहित संस्कृत साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। उनकी रचनाओं में साहित्यिक कृतियों के साथ ही कविताएं, नाटक, निबंधन हैं। धर्मनगरी चित्रकूट में रामभद्राचार्य ने दिव्यांग विश्वविद्यालय का निर्माण कराने के साथ दिव्यांगों के लिए कई कार्य किए हैं। वह खुद भी आंखों से दिव्यांग हैं, लेकिन उनकी प्रतिभा का लोहा विद्वान भी मानते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनके तुलसी पीठ आए थे। उन्होंने जगद्गुरु रामभद्राचार्य के कार्यों की सराहना की थी। श्रीतुलसी पीठ के सहयोग से संचालित विभिन्न प्रकल्पों में साहित्य सेवा, दिव्यांग जन सेवा, संत सेवा, गो सेवा सभी के लिए प्रेरणास्रोत हैं।
देश ही नहीं विदेश में अपनी विद्वता का लोहा मनवाया
जगदगुरु रामभद्राचार्य ने भार्गवराघवीयम, अरुंधति महाकाव्य, ब्रहृमसूत्र नामक प्रसिद्ध ग्रंथ लिखा है। उन्होंने संस्कृत व हिंदी में अपनी रचनाएं लिखीं। इन्ही रचनाओं के लिए उन्हें साहित्य का सर्वोच्च पुरस्कार ज्ञान पीठ पुरस्कार मिला है। स्वयं दृष्टिबाधित होते हुए भी उन्होंने देश ही नहीं विदेश में अपनी विद्वता का लोहा मनवाया। विश्वविद्यालय के पीआरओ एसपी मिश्रा ने दावा किया कि जगदगुरु अब तक लगभग 250 पुस्तकें लिख चुके हैं।