हरिद्वार: देवभूमि उत्तराखंड में ऐसे कई स्थान हैं, जहां ईश्वर की साक्षात कृपा दिखती है. ऐसा ही एक स्थान है, हरिद्वार का विल्व पर्वत. यहां पर विल्वकेश्वर महादेव का प्राचीन मंदिर है. यहीं पास में मां गौरी की तपोस्थली भी है, जहां पर प्राचीन गौरीकुंड है. मान्यता है कि इस कुंड के जल का आचमन करने से युवतियों की शादियां तय हो जाती हैं और जल को पीने से चर्म रोगों से मुक्ति मिलती है. गौरीकुंड का दर्शन करने लोग दूर-दूर से आते हैं.

मान्यता के अनुसार, मां गौरी ने करीब तीन हजार वर्षों तक यहां महादेव को पति रूप में पाने के लिए तपस्या की थी. बरसों की तपस्या के बाद भी जब भोलेनाथ नहीं आए, तब मां गौरी ने भोजन त्याग कर बेलपत्र और पानी के सहारे पुन: एक हजार वर्षों तक तपस्या की, तब भोलेनाथ प्रकट हुए थे.
गौरीकुंड को लेकर मान्यता है कि मां गौरी ने इस कुंड को अपने हाथ के कड़े से बनाया था. तपस्या के दौरान इसी कुंड में ही वह स्नान करतीं थीं.

स्कंद पुराण में है मंदिर का वर्णन
पुजारी अनिल पुरी बताते हैं कि विल्वकेश्वर मंदिर की प्राचीन कथाओं का वर्णन स्कंद पुराण में मिलता है. मां गौरी ने भोलेनाथ से विवाह करने के लिए इसी मंदिर में हजारों वर्षों तक तपस्या की थी, इसलिए इस जगह का विशेष महत्व है. वह बताते हैं कि जिस कन्या का विवाह नहीं हो रहा हो, यदि वह गौरीकुंड के जल से आचमन करे तो उसका विवाह तय हो जाएगा. ऐसे ही जिन महिलाओं की संतान नहीं हो रही हो, वे भी पांच रविवार यहां पूजा कर गौरीकुंड के जल से आचमन करें, तो उन्हें संतान की प्राप्ति हो जाती है. साथ ही गौरी कुंड का जल पीने से चर्म रोग दूर होते हैं

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