समारोह की पहली धुन लेकर संगीत समारोह के मंच पर आए पद्मविभूषण 87 वर्षीय पं. हरिप्रसाद चौरसिया की बांसुरी के साथ संकट मोचन मंदिर के महंत प्रो. विश्वंभर नाथ मिश्रा ने पखावज बजाकर भक्ति रस जगा दिया।

संकट मोचन का आंगन तब मधुबन बन गया, जब हरि की बांसुरी कान्हा बनकर विश्वंभर की पखावज रूपी राधा को रिझाने लगी। श्रोता-श्रद्धालु ग्वाल बाल जैसे इस पल के आनंद में डूब गए। इसी भाव के साथ बुधवार को 7:50 बजे 102वें साल के छह दिवसीय संकट मोचन संगीत समारोह का आह्वान हो गया। महावीर के दरबार में सबसे पहले बांसुरी पर राग विहाग गूंजा तो परिसर भर में फैले भक्तों का जमघट आंगन में लग गया। पखावज की डिमडिमाहट और बांसुरी की धुन में एक खास संवाद चल रहा था, जिसे सुधि श्रोताओं ने बड़े चाव से महसूस किया। पूरे मंदिर परिसर में गूंज रही पं. हरिप्रसाद चौरसिया के बांसुरी की धुन और आलाप लोगों को मंदिर की ओर तेजी से खींच लाई।
प्रस्तुति के दौरान पं. हरि प्रसाद ने तीन बार बांसुरी भी बदली। उनके होठों के कंपन भी सुर बन जा रहे थे। अंत में ओम जय जगदीश हरे… की धुन बजाई तो विदेशी श्रोता भी ताली बजाकर झूमने लगे। समापन के बाद श्रोताओं ने ऊंचे स्वर में हर-हर महादेव का जयघोष कर आभार जताया। दोनों वादकों के साथ बांसुरी पर विवेक सोनार और वैष्णवी जोशी ने मनोहारी संगत की।