श्री वृंदावन जी श्री मथुरा जी से 10 किमी की दूरी पर श्री वृंदावन स्थित है। श्री वृन्दावन धाम भगवान श्री कृष्ण को सबसे अधिक प्रिय है। भगवान श्री कृष्ण वृंदावन को अपना निज घर मानते थे और श्री राधा रानी अथवा अन्य सखियों के साथ श्री वृंदावन धाम में ही रहते थे। समस्त लोक में गोलोक है वही वृंदावन धाम है।

एक बार भगवान श्री कृष्ण, श्री राधा जी से बोले, हे प्रिये आप हमारे साथ पृथ्वी पर चलो। श्री राधा जी ने माना करते हुए बोला, हे प्रभु जिस स्थान पर यमुना नदी नही है। गिरिगोवर्धन नहीं है। उस स्थान पर जाने के लिए मेरा मन नहीं करता है। भगवान ने निज धाम से चौरासी कोस भूमि, गोवर्धन पर्वत व यमुना नदी प्रथ्वी पर प्रकट किये। इसलिये बृजभूमि सभी लोको में पूज्यनीय है।

वृंदावन का नाम वृंदावन क्यों है। इसके बारे में एक कथा भी है।

Shri Krishna Balram Iskcon Temple

वृन्दा (तुलसी) जी के माता पिता का नाम धर्मध्वजा और माधवी था। श्री वृंदा जी शडखचूड की पत्नी थी। वह एक आदर्श नारी थी। जो अपने पति को परमेश्वर की तरह पुजती थी। श्री वृंदा जी के पतीव्रता होने के कारण उनके पति को अलौकिक शक्तियां प्राप्त हो गईं थी। जिसकी वजह से उसके पति ने स्वर्ग को अपने बल से जीत लिया था। श्री वृन्दा की बजह से उसके पति का कोई भी अस्त्र कुछ नही बिगड़ पाता था।

जिसके कारण सभी देवता भगवान ब्रह्मा जी को लेकर भगवान विष्णु जी के पास गये और भगवान विष्णु जी से वृंदा जी के सतीत्व को भंग करने की प्रार्थना करने लगे। संसार की भलाई के लिए भगवान विष्णु जी को वृंदा जी का सतीत्व भंग करना पड़ा। वृंदा जी, भगवान विष्णु जी को काला पत्थर बनने का श्राप दे दिया। (जिसके कारण भगवान श्री विष्णु काला पत्थर बन गए।

जिनको हम भगवान श्री सालेग्राम के रूप में पूजते है।) यह देखकर सभी देवता वह पर प्रकट हुए और वृंदा जी को सारी घटना के बारे में बताया के क्यों भगवान को उनका सतीत्व भंग करना पड़ा। इसके घटना के बाद ही वृंदा जी का नाम तुलसी पड़ा। और उनको सभी पेड़ो मे प्रधान पेड़ होने का आशीर्वाद मिला और आशीर्वाद मिला के तुम वृन्दावन में वृदावानी नाम के पेड़ के रूप में विराजमान रहोगी। तुम्हारे पेड़ के पत्तों के बिना भगवान विष्णु की पूजा अधूरी मानी जाएगी।

तीर्थराज प्रयाग राज और श्री वृंदावन कथा

Shri Radharamana Ji

एक बार श्री नारद जी, श्री तीर्थराज प्रयाग राज के पास पंहुचे। तीर्थराज ने उनका स्वागत सत्कार किया और वह तीर्थराज कैसे हुये। सारी घटना नारद जी को सुनाई। श्री नारद जी ने पूछा। किया वृंदावन भी सभी अन्य तीर्थों की तरह उन्हें कर देने आते है। तीर्थराज ने नकारात्मक उत्तर दिया। श्री नारद जी ने कहा, फिर आप कैसे तीर्थराज हुये। यह बात तीर्थराज को अच्छी नही लगी। वह भगवान के पास गये। भगवान ने तीर्थराज के आने का कारण पूछा।

तीर्थराज ने अपनी सारी व्यथा बताई और निवेदन किया के प्रभु आपने मुझे तीर्थराज तो बना दिया। परन्तु श्री वृंदावन तो मुझे कर देने नही आते। इसका कारण क्या है। मे समझ नही सका। यदि कोई एक भी तीर्थ मुझे कर देने नही आता है। तो मेरा तीर्थराज होना सर्वथा अनुचित है। प्रयाग राज की बात सुनकर भगवान बोले, तीर्थराज मैंने तुम्हे तीर्थो का राजा बनाया है। अपने निज ग्रह श्री वृंदावन का नही। श्री वृंदावन तो मेरा अपना घर है और श्री राधा रानी जी की प्रिये स्थली है। वहा की राजा तो वे ही है। में भी सदा वही रहता हूँ। अत: श्री वृन्दावन धाम इस सब से मुक्त है।

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