संतों के बीच ज्योतिष्पीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने महाकुंभ में कई राष्ट्रीय मुद्दों पर अपनी बेवाक राय से सुर्खियां बटोर रहे हैं। उन्होंने परमधर्म संसद के जरिए कई मुद्दों पर निर्णय भी लिया है। महाकुंभ से जुड़े विविध पक्षों पर उनसे विस्तार से बात की अनूप ओझा ने…।

संगम की रेती पर अदृश्य सरस्वती के रूप में देश भर से आए धर्माचार्य ज्ञान की सरस्वती का पान विश्व समुदाय को करा रहे हैं। संतों के बीच ज्योतिष्पीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने महाकुंभ में कई राष्ट्रीय मुद्दों पर अपनी बेवाक राय से सुर्खियां बटोर रहे हैं। उन्होंने परमधर्म संसद के जरिए कई मुद्दों पर निर्णय भी लिया है।
कुंभ है क्या?भारतीय संस्कृति में कुंभ को किस रूप में व्यक्त करेंगे।
असल में कुंभ कलश को कहा जाता है? कलश यानी घड़ा। कुंभ पूर्णता का प्रतीक है। वैसे कुंभ दो तरह का होता है। एक खाली कुंभ और एक भरा हुआ। हम सब खाली हैं। इसलिए कि हमारे हृदय रूपी कुंभ में भरने के लिए बहुत इच्छाएं हैं। यह मिल जाए, वह मिल जाए। कुछ न कुछ पाने के लिए रीता घड़ा आकुल है। लेकिन जब हमारे भीतर पूर्णता आ जाएगी , तब हमको कुछ नहीं चाहिए।
जब तक भौतिकता है, तबतक अधूरा कुंभ पूर्णता के लिए भटकता रहेगा। संगम पर लगा कुंभ अनंत तत्वों से भरा हुआ है। इस कुंभ में डुबकी लगाने से आध्यात्मिकता समाहित हो जाती है। हृदय रूपी घट भी गंगा, यमुना में डुबकी लगाने से भर जाता है। संतों से उपदेश प्राप्त कर लोग प्रसन्न हो जाते हैं। यही कुंभ की महिमा है। यह हमेशा भरा हुआ होता है और इसमें डुबकी लगाने से जीवन की रिक्तता दूर हो जाती है।