पतंजलि योगपीठ में चल रहे छत्रपति शिवाजी महाराज कथा के तीसरे दिन स्वामी गोविंददेव गिरी महाराज ने शिवाजी के अंतर्मुखी होने और उनके चिंतन का प्रसंग सुनाया। स्वामी गोविंद देव ने कहा कि शिवाजी की बीजापुर यात्रा उन्हें अन्तर्मुख करती गई। वहां उन्होंने भवन मंदिरों को देखा, चौराहों पर कटती गायों को देखा, डरे हुए किसानों को देखा, घसीट कर ले जाती हुई ललनाओं को देखा, जिससे उनके मन में काफी कष्ट हुआ। उनके मन में बार-बार यह प्रश्न आता था कि मैं कौन हूं, मेरा परिवार कैसा है, मेरा समाज कैसा है, मेरा राष्ट्र क्या है। वहीं जीजा माता उन्हें बार-बार कहती थीं कि इस पर विचार करते रहो। इस प्रकार चिंतन करना ही सबसे बड़ा चिंतामणि होता है।