भगवान राम ने जिस रामराज्य की स्थापना की थी, उस रामराज्य की नींव में कई ऐसे पत्थर थे, जिन्होंने रामराज्य की आधारशिला को मजबूती प्रदान की थी। अब जब श्रीराम का भव्य घर बन रहा है तो कई ऐसे किरदार हैं जो मंदिर के नींव के पत्थर के रूप में काम कर रहे हैं, भले ही इनका योगदान गिलहरी जैसा ही हो, लेकिन इनकी भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

राम मंदिर की पहली शिला तराशने वाले मुख्य कारीगर अन्नूभाई सोमपुरा भी रामलला के खास मेहमान होंगे। राम मंदिर ट्रस्ट ने उनके विशिष्ट योगदान को देखते हुए आमंत्रित किया है। अब वह भी देश के चुनिंदा विशिष्टजनों की श्रेणी में शामिल हो गए। 22 जनवरी को प्राण प्रतिष्ठा समारोह के साक्षी बनेंगे।
राम मंदिर के मुख्य वास्तुकार चंद्रकांत सोमपुरा के कहने पर वह वर्ष 1990 में 45 वर्ष की आयु में अहमदाबाद से अयोध्या आए। इनके साथ पुत्र प्रकाश सोमपुरा और भाई प्रदीप सोमपुरा भी आए। तब से अन्नूभाई अयोध्या के ही होकर रह गए। यहां आने के बाद अपने भाई और बेटे के साथ इन्होंने प्रस्तावित राम मंदिर के लिए शिलाओं को तराशने का काम शुरू कर दिया। इस तरह राम मंदिर की पहली शिला इन्हीं के हाथों से तराशी गई। यहां आने के बाद इन्हें राम मंदिर आंदोलन के नायक और विहिप सुप्रीमो रहे अशोक सिंहल के कहने पर रहने का ठौर मिला। मौजूदा समय में राम मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष महंत नृत्यगोपाल दास ने मणिराम दास छावनी आश्रम में रहने के लिए एक कमरा दिया।
मौजूदा समय में जहां पर रामजन्मभूमि न्यास मंदिर निर्माण कार्यशाला है, तब वहां चारों तरफ जंगल हुआ करता था। इन्होंने सिर्फ दो शिलाओं से मंदिर निर्माण के लिए पत्थरों की तराशी का काम बिना किसी मशीन के हाथों से ही छेनी के सहारे शुरू किया। फिर धीरे-धीरे कार्यशाला में कारीगरों की संख्या बढ़ती गई। यहां पर गुजरात, राजस्थान, मिर्जापुर और अयोध्या के करीब 150 कारीगर काम कर रहे हैं। वर्ष 1996 में पहली बार शिलाओं को काटने के लिए मशीन आई। फिर इसकी मदद से पत्थरों को तराशने का काम आगे बढ़ता गया। नौ नवंबर वर्ष 2019 को सुप्रीम कोर्ट का निर्णय आने तक अन्नूभाई के नेतृत्व में मंदिर के भूतल की तराशी का काम पूरा कर लिया गया था।
जीवन भर की तपस्या अब जाकर सफल हुई : अन्नूभाई सोमपुरा
मंदिर निर्माण का सपना पूरा हो रहा है तो 78वें वर्ष में प्रवेश कर चुके अन्नूभाई की खुशी का ठिकाना नहीं है। वह कहते हैं यह पल उनके जीवन का सबसे बड़ा उत्सव, सबसे बड़ा पर्व है। जीवन भर की तपस्या अब जाकर सफल हुई। अपनी आंखों से रामलला को उनके महल में विराजते हुए देखेंगे तब पता नहीं कैसी अनुभूति होगी, इसकी कल्पना करके ही उनकी आंखें डबडबा जाती हैं और फिर वह आगे कुछ भी नहीं कह पाते।