पूरे कुंभ के दौरान अखाड़ा परिषद चार अलग-अलग गुटों मेें बंटा रहा। वर्चस्व की जंग में तीनों संन्यासी अखाड़े आपस में ही उलझे रहे वहीं, विवाद के चलते उदासीन अखाड़ों ने दूरी बनाए रखी।

सनातन धर्मियों के सबसे बड़े जुटान महाकुंभ के दौरान भी अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद में एका नहीं हो सकी। पूरे कुंभ के दौरान अखाड़ा परिषद चार अलग-अलग गुटों मेें बंटा रहा। वर्चस्व की जंग में तीनों संन्यासी अखाड़े आपस में ही उलझे रहे वहीं, विवाद के चलते उदासीन अखाड़ों ने दूरी बनाए रखी।
हालात इस कदर बिगड़े कि अखाड़ों ने एक दूसरे के यहां आमंत्रण-निमंत्रण की वर्षों पुरानी परंपरा भी तोड़ दी। एक दूसरे के यहां होने वाले धार्मिक कार्यक्रमों में हिस्सा लेने नहीं पहुंचे। इसी खींचतान के बीच कुंभनगरी से उनकी विदाई भी हो गई। महाकुंभ आरंभ होने से पहले ही अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद में अध्यक्ष एवं महामंत्री पद को लेकर विवाद छिड़ गया। निरंजनी अखाड़े के श्रीमहंत रवींद्र पुरी एवं जूना अखाड़े के हरि गिरि को परिषद मेंं पदाधिकारी बनाने से नाराज होकर महानिर्वाणी ने अनि अखाड़ा के साथ मिलकर अलग गुट बना लिया।
इसने महानिर्वाणी के रवींद्र पुरी को अध्यक्ष एवं निर्मोही अनि अखाड़े के राजेंद्र दास को महामंत्री बना दिया। महानिर्वाणी एवं निरंजनी के बीच चल रहे विवाद को देखते हुए नया उदासीन एवं बड़ा उदासीन ने अखाड़ा परिषद से दूरी बना ली। अनि अखाड़े ने संन्यासी अखाड़ों से अलग वैष्णव परिषद बना लिया। सभी अखाड़े अध्यक्ष एवं महामंत्री पद को लेकर ही अड़े हुए हैं। सुलह-सफाई न होने के पीछे भी अखाड़ा पदाधिकारी एक दूसरे को ही जिम्मेदार ठहरा रहे हैं।
एक-दूसरे के धार्मिक कार्यक्रमों से बनाए रखी दूरी : अखाड़ा परिषद में वर्चस्व की जंग इस कदर छिड़ी रही कि अखाड़ों ने एक-दूसरे के यहां होने वाले कार्यक्रमों में जाने को भी दर किनार कर दिया। महाकुंभ में महामंडलेश्वर की पदवी देने की परंपरा है। सभी अखाड़ों के प्रतिनिधि इसमें आकर चादरपोशी कार्यक्रम में शामिल होते हैं। पिछले कुंभ तक अखाड़ों ने यह परंपरा निभाई लेकिन, इस बार यह परंपरा टूट गई। धर्मध्वजा स्थापित होने के बाद उनका यह भाईचारा भी खत्म हो गया। वैष्णवों के प्रतिनिधि संन्यासी अखाड़ों में नहीं गए। संन्यासियों ने भी वैष्णव अखाड़ों से दूरी बनाए रखी। यहां तक अखाड़ों में भी आपसी आना-जाना बंद रहा।
हमारे साथ आठ अखाड़े हैं। हम चुनाव कराना चाहते हैं। दूसरे लोग जबरदस्ती अखाड़ा परिषद में कब्जा जमाना चाहते हैं। इस तरह से अखाड़ा परिषद नहीं चलाया जा सकता। पंचायती रीति से ही इसका संचालन हो सकता है।