बाघंबरी गद्दी मठ के पास 80 बीघे से अधिक कृषि भूमि,क्रिया योग आश्रम 180 बीघे भूमि का काश्तकार
सदाफल देव आश्रम के पास भी 10 एकड़ से अधिक की खेती, कुछ मठों का अनाज बाजार में जाता है तो कुछ का आश्रमों में ही होता है इस्तेमाल

मठ-मंदिरों में सिर्फ दान और चढ़ावा ही नहीं,सैकड़ों बीघे भूमि की अपनी खेती भी है। बाघंबरी गद्दी मठ और क्रिया योग आश्रम जैसे कई मठ सैकड़ों बीघे के संक्रमणीय भूमिधर के तौर पर जिले के बड़े काश्तकार हैं। इनमें आधार कार्ड कुछ मठों के नाम पर हैं, तो कुछ संतों के नाम से जारी कराए गए हैं। कुछ मठों से चावल, गेहूं की बिक्री की जाती है, जबकि ऐसे भी मठ हैं जो सिर्फ गरीबों की मदद के साथ ही आश्रमों का संचालन भी अपनी खेती के अनाजों से करते हैं।

बाघंबरी गद्दी मठ केे पास प्रयागराज और कौशांबी को मिलाकर कुल 80 बीघा से अधिक कृषि भूमि है। बाघंबरी गद्दी मठ की यह संक्रमणीय भूमिधरी है, जिस पर गेंहू, धान केे अलावा अन्य फसलें उगाई जाती हैं।  मठ की जमीनों पर सब्जियां भी उगाई जाती हैं। इस मठ की गद्दी के नाम से कोई आधार कार्ड नहीं है। अनाज की बिक्री कभी होती भी है, तो महंत के नाम से जारी आधार कार्ड का इस्तेमाल होता है।

बाघंबरी गद्दी मठ के महंत और अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि बताते हैं कि मठ की जमीनों पर जो खेती होती है,उससे आने वाले अनाज का ज्यादातर इस्तेमाल मठ के संचालन में ही हो जाता है। पिछले वर्ष मठ का चावल बेचा गया था। तब उनके आधार पर ही चावल की बिक्री हुई थी। इसी तरह इस जिले केे सबसे बड़े भूमिधर के तौर पर फिलहाल क्रियायोग आश्रम झूंसी का नाम है। इस आश्रम के पास करछना में 120 बीघा और बरौत के पास 60 बीघा भूमि है। करछना में खेती होती है। वहां धान और गेहूं क उन्नतिशील प्रजातियों की खेती होती है।

 

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