प्रसिद्ध रामकथा वाचक मोरारी बापू ने रामकथा के छठवें दिन भक्तों को गंगा अवतरण की कथा का श्रवण कराया। कहा कि जब राजा दिलीप के पुत्र भगीरथ को यह पता चला कि उनके पूर्वजों का उद्धार गंगा के अवतरण से होगा तो उन्होंने मां गंगा को धरती पर लाने के लिए घोर तपस्या की। उन्होंने ब्रह्मदेव को प्रसन्न किया। भगीरथ की घोर तपस्या को देखकर मां पार्वती ने भी मां गंगा को समझाया कि वह अपनी जिद छोड़ दें और पुण्य कार्य को करें। तब मां गंगा ने कहा कि मैं धरती पर उतर तो जाऊं लेकिन मेरा वेग बहुत प्रचंड होगा, जिसे संभालना धरती के बस की बात नहीं होगी। अनायास ही बहुत सारे जीव जंतु मारे जाएंगे। इसके लिए सिर्फ महादेव ही हैं जो मेरे वेग को संभाल सकते हैं। मुनि की रेती स्थित श्री पूर्णानंद खेल मैदान में आयोजित श्री रामकथा में कथावाचक मोरारी बापू ने कहा कि तब भगीरथ ने महादेव से प्रार्थना की। शिव ने प्रसन्न होकर मां गंगा को अपनी जटा में धारण करना स्वीकार किया। महादेव ने फिर अपनी एक जटा को खोलकर गंगा की लहरों को धीरे-धीरे धरती पर उतारा। भगीरथ ने गंगा की कृपा से अपने पूर्वजों का उद्धार किया। बापू ने कहा कि राम कथा हमें प्रवीण तो बनाती है, साथ ही यह हमें प्रमाणिक भी बनाती है। परमात्मा हमें अवसर देता है, उसे चूकों नहीं। जहां से ब्रह्म विचार मिले उसको ग्रहण कर उसको पचाने का प्रयास करो। शास्त्र सम्मत है कि तीर्थ का पुण्य फल दर्शन, स्पर्श, स्नान, पान और स्मरण से भी मिलता है। कहा, प्रभु के सन्नमुख की यात्रा में अगर मन में कोई दूषित विचार आये तो संयम और संतोष पूर्वक केवल दृष्टा मात्र बने रहो, उस विचार में लिप्त न हो जाओ। श्री रामकथा को विश्राम देने के बाद मोरारी बापू लक्ष्मणझूला रोड स्थित हेमकुंड गुरुद्वारा साहिब पहुंचे। बापू ने यहां माथा टेककर भक्तों के कल्याण की प्रार्थना की। गुरुद्वारा प्रशासन की ओर से बापू का स्वागत किया गया।