महाकुंभ के तीसरे और आखिरी शाही स्नान पर्व की वसंती छटा इसी तरह दुनिया को अपने मोहपाश में बांधती नजर आई। रात आठ बजे तक मेला प्रशासन ने 2.57 करोड़ श्रद्धालुओं के संगम में डुबकी लगाने का दावा किया।
को कहि सकइ प्रयाग प्रभाऊ/ कलुष पुंज कुंजर मृगराऊ/
अस तीरथपति देखि सुहावा/ सुख सागर रघुबर सुखु पावा।
तुलसीदास की उक्त चौपाई वसंत पंचमी के अमृत स्नान पर्व पर साकार हुई। इसका आशय है कि पापों के समूह रूपी हाथी को मारने के लिए सिंह रूपी प्रयागराज का प्रभाव कोई नहीं कह सकता। ऐसे सुहावने तीर्थराज का दर्शन कर सुख के समुद्र प्रभुश्री राम भी त्रेता में मुग्ध हो गए थे।
वसंत पंचमी पर संगम तट पर भक्ति की लहरों में डूबने के लिए समूचा विश्व पौ फटने से पहले ही आतुर हो उठा। महाकुंभ के तीसरे और आखिरी शाही स्नान पर्व की वसंती छटा इसी तरह दुनिया को अपने मोहपाश में बांधती नजर आई। रात आठ बजे तक मेला प्रशासन ने 2.57 करोड़ श्रद्धालुओं के संगम में डुबकी लगाने का दावा किया। इसके साथ अब तक 37.54 करोड़ लोग स्नान कर चुके हैं।
रात 12 बजे के बाद से ही वसंत की डुबकी लगने लगी
वसंत पंचमी पर पूरी दुनिया एक तट पर एकता के महाकुंभ को परिभाषित करती रही। इस अनंत प्रेम, बंधुत्व के प्रवाह का संत-भक्त, कल्पवासी सभी साक्षी बने। रात 12 बजे के बाद से ही वसंत की डुबकी लगने लगी। अमेरिका से आई प्रेममई साई मां लक्ष्मी के साथ डेनिल, डेनियल ट्वेन, रूस के हमजातोव, लूलिया गले में रुद्राक्ष की माला और तुलसी की लटदार कंठी पहनकर संगम पर मुस्कुराते पहुंचे।
संगम पर संस्कृतियों का समागम
संगम तट भारतीय और विदेशी श्रद्धालुओं से पूरी तरह से भर गया। आस्था का ऐसा संगम हुआ कि संगम की रेत तक नजर नहीं आ रही थी। हर तरफ सिर्फ सिर ही सिर नजर आ रहे थे। दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, पश्चिम बंगाल, असम, बिहार, केरल, आंध्र प्रदेश समेत हर राज्य, हर जाति पंथ के लोग थे। विदेशी श्रद्धालुओं ने संगम के पवित्र जल में डुबकी लगाकर पुण्य अर्जित किया। अमेरिकी, इस्राइली, फ्रांसीसी समेत कई अन्य देशों के भक्तों ने डुबकी लगाकर सनातन की संस्कृति को साझा किया।
