ब्रज की होली में टेसू के रंगों का विशिष्ट स्थान है। सबसे पहले टेसू के फूलों को पानी के साथ बड़े-बड़े ड्रमों में भिगोया जाता है। उसके बाद फूलों का रस निकाला जाता है।

बरसाना में खेली जाने वाली ब्रज की अनोखी लठामार होली की तैयारी चरम पर है। श्रीजी मंदिर में नंदगांव के हुरियारों को रंगों में सराबोर करने के लिए टेसू के फूलों से रंग तैयार किया जा रहा है। विश्व प्रसिद्ध होली खेलने के लिए 10 क्विंटल टेसू के फूलों से प्राकृतिक रंग तैयार किया जा रहा है।
दरअसल, यहां रसायन युक्त रंगों का प्रयोग नहीं किया जाता है। हुरियारों को रंग में सराबोर करने के लिए टेसू के फूलों से तैयार प्राकृतिक रंग बनाया जा रहा है। 10 क्विंटल फूल इस बार मंगवाए गए हैं। ब्रज की लठामार होली की परंपरा बड़ी ही निराली है। हर चीज परंपरा के अनुसार होती है। बात हुरियारिनों की हो चाहे हुरियारों की, दोनों ही द्वापर काल परंपरा के अनुसार ही चलते हैं।
लट्ठ वहीं ढाल वही पारंपरिक कपड़े सभी कृष्णकालीन परंपरा को जीवंत करते दिखाई पड़ते हैं। इतना ही नहीं लठामार होली के दौरान खड़ी ब्रज भाषा में हुरियारिनों पर अपनी मधुर वाणी से रसकों के पदों पर हुरियारे तीर छोड़ते हैं। लठामार होली के दौरान होली खेलने में रंग और अबीर-गुलाल भी बरसता है। किसी हुरियारिन या हुरियारे को किसी प्रकार की परेशानी न हो इसके लिए भी बरसाना लाडली जी मंदिर के सेवायतों द्वारा विशेष प्रकार का रंग तैयार किया जा रहा है। जिसके लिए टेसू के 10 क्विंटल फूलों का प्रयोग किया जाता है। इसे तैयार करने में 10 दिन लग जाते हैं।
ऐसे बनता है टेसू ईको फ्रेंडली रंग
सबसे पहले टेसू के फूलों को पानी के साथ बड़े-बड़े ड्रमों में भिगोया जाता है। उसके बाद फूलों का रस निकाला जाता है। निकले रस में चूने को मिलाकर वापस ड्रमों में भर दिया जाता है। फिर विश्व प्रसिद्ध लठामार होली के दिन इसका प्रयोग किया जाता है।