फ्रांस की सोरबोन यूनिवर्सिटी के गणित के प्रोफेसर फेड्रिक ब्रूनो नागा संन्यासी बन गए हैं। दशनामी परंपरा के जूना अखाड़े में महंत घनानंद से संन्यास की दीक्षा ली। महाकुंभ में कल्पवास करेंगे। महाकुंभ में छाई सनातन संस्कृति और भक्ति की परंपरा की दुनिया किस कदर दीवानी हो रही है, इसकी बानगी देखते रह जाएंगे। फ्रांस की सोरबोन यूनिवर्सिटी के गणित के प्रोफेसर फेड्रिक ब्रूनो ने संगम की रेती पर संन्यास धारण कर लिया है। वह दशनमी परंपरा के पंच दशनाम जूना अखाड़े के नागा संन्यासी बने हैं। महाकुंभ में जूना अखाड़े की छावनी में रहकर वह कल्पवास करेंगे। जूना अखाड़े में संन्यासी बने फेड्रिक ब्रूनो सनातन संस्कृति से इस कदर प्रभावित हुए हैं कि उन्होंने घर-बार छोड़ दिया है।
पत्नी और तीन बेटे-बेटियों के भरे-पूरे परिवार की माया का परित्याग कर वह महाकुंभ में आए हैं। फ्रांस की यूनिवर्सिटी सोरबोन के गणित के प्रोफेसर फेड्रिक ब्रूनो ने भजन और ईश्वर की भक्ति के लिए नौकरी छोड़ दी है। अब वह जूना अखाड़े में धूनी रमाकर बैठ गए हैं। ब्रूनो के मन में गणित के जोड़-घटाने से विरक्ति पैदा हो गई है। वह अब गुणा-गणित की दुनिया से अलग अध्यात्म के रंग में रंग गए हैं। ब्रूनो का कहना है कि अंकों के गुणा-भाग अब उनकी दिलचस्पी नहीं रह गई है। अब वह प्रेम और शांति चाहते हैं। जूना अखाड़े के थाना पति घनानंद गिरि को गुरु बनाने वाले प्रोफेसर ब्रूनो अब महंत ब्रूनो गिरि बन गए हैं। प्रोफेसर ब्रूनो को अंकों की गणित और गणना से वैराग्य होने की कहानी भी कम दिलचस्प नहीं है। ब्रूनो बताते हैं कि जीवन के अंतिम सत्य की तलाश के लिए सनातन धर्म की शरण में वह आए हैं। उनके गुरु जूना अखाड़े के थानापति घनानंद गिरि बताते हैं कि ब्रूनो अक्सर हरिद्वार स्थित उनके आश्रम में आते थे। वहां वह योग की शिक्षा लेते थे। योगाभ्यास से ब्रूनो के मन में शांति का संचार हुआ और वह भक्ति की दुनिया में उतर गए। योग से जुड़ने के बाद ब्रूनो ने धर्म शास्त्रों का अध्ययन भी शुरू कर दिया है।