पुराणों में मनीषी पुरुषों ने जल को ‘नारा’ कहा है। वह नारा ही भगवान का अयन-निवास स्थल है इसलिए वे नारायण कहलाते हैं। नारायण स्वरूप भगवान विष्णु सर्वत्र व्यापक रूप में विराजमान हैं। वे ही मेघ स्वरूप होकर वर्षा करते हैं। वर्षा से अन्न पैदा होता है और अन्न से प्रजा जीवन धारण करती है। श्रीविष्णु देवशयनी एकादशी से योग निद्रा में चले जाते हैं और भाद्रपद शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन वे अपनी करवट बदलते हैं। इस एकादशी को पद्मा, परिवर्तिनी, वामन एकादशी या डोल ग्यारस के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु करवट बदलने के समय प्रसन्न मुद्रा में रहते हैं, इस अवधि में भक्तिभाव और विनयपूर्वक उनसे जो कुछ भी मांगा जाता है वे अवश्य प्रदान करते हैं। यह भी माना जाता है कि इस दिन माता यशोदा ने जलाशय पर जाकर श्रीकृष्ण के वस्त्र धोए थे,इसी कारण इसे जलझूलनी एकादशी भी कहा जाता है। मंदिरों में इस दिन भगवान श्रीविष्णु की प्रतिमा या शालिग्राम को पालकी में बिठाकर पूजा-अर्चना के बाद ढोल-नगाड़ों के साथ शोभा यात्रा निकाली जाती है।

एकादशी पूजा विधि
शास्त्रों के अनुसार पद्मा एकादशी के दिन प्रातः स्नान आदि से निवृत होकर भगवान विष्णु के वामन अवतार को ध्यान करते हुए उन्हें पचांमृत से स्नान करवाएं। इसके पश्चात गंगाजल से स्नान करवाकर कुमकुम-अक्षत, पीले पुष्प, चन्दन, तुलसी पत्र आदि से श्री हरि की पूजा करें। वामन भगवान की कथा का श्रवण या वाचन करने के बाद दीपक से आरती उतारें एवं प्रसाद सभी में वितरित करें। पुण्य फलों की प्राप्ति के लिए भगवान विष्णु के मंत्र ‘‘ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय’’का यथा संभव तुलसी की माला से जाप करें। शाम के समय भगवान विष्णु के मंदिर अथवा उनकी मूर्ति के समक्ष भजन-कीर्तन करना शुभ माना गया है।

ये मिलता है फल
धर्मग्रंथों के अनुसार, पद्मा एकादशी का व्रत करने से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है। जो मनुष्य इस एकादशी को भगवान विष्णु के वामन रूप की पूजा करता है उसके समस्त पापों का नाश होता है और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही, भगवान विष्णु की कृपा से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है। इस व्रत को करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।

एकादशी कथा
शास्त्रों के अनुसार महादानी राजा बलि ने अपने पराक्रम से तीनों लोकों पर अपना अधिकार कर लिया था। लेकिन वह अपने द्वार पर आए किसी भी याचक को कभी भी निराश नहीं करते थे। एक बार भगवान विष्णु ने राजा बलि की परीक्षा ली। वामन रूप में भगवान विष्णु ने राजा बलि से तीन पग भूमि देने का वचन मांग लिया। भगवान विष्णु ने दो पग में समस्त लोकों को नाप लिया। जब तीसरे पग के लिए कुछ नहीं बचा तो राजा बलि ने अपना वचन पूरा करने के लिए अपना सिर वामन ब्राह्राण के पैर के नीचे रख दिया। भगवान, राजा बलि की इस भावना से बेहद प्रसन्न हुए और उन्हें पाताल लोक का राजा बना दिया।

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