महाकुंभ में पेशवाई और शाही स्नान की पंरपरा महानिर्वाणी अखाड़े के नागा संन्यासियों ने शुरू की। श्रीमहंत लालपुरी की पुस्तक ”दशनाम नागा संन्यासी एवं श्रीपंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी” में पेशवाई और शाही स्नान की शुरुआत का विस्तार से उल्लेख है।

Mahanirvani Akhara started the tradition of royal bath in Maha Kumbh

महाकुंभ में अखाड़ों की धर्म ध्वजा की स्थापना से लेकर शाही स्नान तक की परंपरा की शुरुआत भी निराली है। पहली बार महाकुंभ में पेशवाई के बाद मकर संक्रांति पर्व पर महानिर्वाणी अखाड़े के नागा संन्यासियों ने अस्त्र-शस्त्र के साथ सज-धज कर शाही स्नान किया था। तभी से विश्व के इस सबसे बड़े सांस्कृतिक-आध्यात्मिक समागम के मेले में दुनिया नागाओं के शाही स्नान की झलक के लिए उमड़ती आ रही है। इस बार महाकुंभ में पहला शाही स्नान 14 जनवरी 2025 को होगा। महाकुंभ में पेशवाई और शाही स्नान की पंरपवा महानिर्वाणी अखाड़े के नागा संन्यासियों ने शुरू की। श्रीमहंत लालपुरी की पुस्तक ”दशनाम नागा संन्यासी एवं श्रीपंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी” में पेशवाई और शाही स्नान की शुरुआत का विस्तार से उल्लेख है। महंत लालपुरी लिखते हैं कि अखाड़े के ईष्टदेव कपिल मुनि और भगवान शिव के मिलन पर होने वाले ”हरिहर” की पावन ध्वनि के जयघोष के बाद इस अखाड़े के संतों ने कंगन पूजा और अग्निहोत्र के रूप में हर्रास पूजा की थी।

सबसे पहले महानिर्वाणी अखाड़ा निकलता है स्नान के लिए

इस पुस्तक में महंत लाल पुरी ने इस घटना का बखूबी चित्रण किया है। वह लिखते हैं कि इसके बाद महानिर्वाणी अखाड़े के संस्थापक संतों और हजारों नागा सन्यासियों ने हर्रास के साथ प्रयागराज के कुंभ में प्रवेश किया था। महानिर्वाणी अखाड़े के श्रीपंचों के हर्रास के साथ शोभायात्रा की शक्ल में महाकुंभ में प्रवेश किया था। पंच दशनाम महानिर्वाणी अखाड़े के सचिव श्रीमहंत रवींद्रपुरी बताते हैं कि प्रयागराज के महाकुंभ में पहली बार मकर संक्रांति के दिन महानिर्वाणी अखाड़े के नागा संन्यासियों ने पर्व-ध्वजा की स्थापना कर हाथों में भाला के अलावा अन्य अस्त्र-शस्त्र लेकर स्नान किया था। इसके बाद दूसरे संतों और श्रद्धालुओं ने संगम में स्नान किया था। बाद में इसी को शाही स्नान के रूप में मान्यता प्रदान की गई। इसी परंपरा का पालन करते हुए अब भी महाकुंभ में महानिर्वाणी अखाड़ा ही सबसे पहले शाही स्नान के लिए निकलता है। इस अखाड़े की छावनी में दो ध्वजाओं की स्थापना अब भी की जाती है।

दशनामी नागाओं ने किया था महानिर्वाणी के ही साथ आखिरी शाही स्नान

महानिर्वाणी अखाड़े के नागाओं ने पहली बार संगम की रेती पर मास पर्यंत रहकर वंसत पंचमी के दिन महाकुंभ पर्व का आखिरी स्नान किया था। सुसज्जित रूप में छावनी से निकलकर संगम पर नागाओं के इस शाही स्नान में दशनामी परंपरा के सभी संन्यासियों ने हिस्सा लिया था। तभी से महानिर्वाणी के बाद बारी -बारी से सभी अखाड़े शाही स्नान के लिए सुबह से शाम तक निकलते रहते हैं। 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Uttarakhand