यह पहला महाकुंभ है, जिसमें सात शैव, तीन शाक्त और तीन वैष्णव परंपरा के अखाड़ों के साथ ही किन्नर अखाड़े का शिविर विश्व समुदाय के लिए आकर्षण का केंद्र बनेगा। महाकुंभ का शुभारंभ 13 जनवरी 2025 को पौष पूर्णिमा की प्रथम डुबकी से होगा।

संगम की रेती पर सनातन संत परंपरा की रंग-बिरंगी संस्कृति विश्व समुदाय के लिए सज गई है। महाकुंभ में अमृतमयी त्रिवेणी की बूंदों के स्पर्श से जीवन को धन्य बनाने के लिए शैव, शाक्त और वैष्णव परंपरा के अखाड़ों की छवनियां रेती पर सज गई हैं। यह पहला महाकुंभ है, जिसमें सात शैव, तीन शाक्त और तीन वैष्णव परंपरा के अखाड़ों के साथ ही किन्नर अखाड़े का शिविर विश्व समुदाय के लिए आकर्षण का केंद्र बनेगा। महाकुंभ का शुभारंभ 13 जनवरी 2025 को पौष पूर्णिमा की प्रथम डुबकी से होगा। इसी के साथ 45 दिन चलने वाले मेले की शुरुआत होगी। 26 फरवरी को महाशिवरात्रि पर आखिरी स्नान के साथ ही संत और भक्त विदा होने लगेंगे।
विश्व के सबसे बड़े सांस्कृतिक समागम के तौर पर महाकुंभ में 45 करोड़ से अधिक संतों-भक्तों के डुबकी लगाने का अनुमान है और इसी लक्ष्य के अनुरूप तैयारियां की जा रही हैं।सेक्टर-18 में काली मार्ग से त्रिवेणी मार्ग तक ही नहीं, संगम लोवर मार्ग पर भी सभी 14 अखाड़ों के संतों की छावनियां आकार ले चुकी हैं।अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष श्रीमहंत रवींद्र पुरी बताते हैं कि यह अमृत महाकुंभ है। इसमें डुबकी लगाने के लिए दुनिया आतुर है। महाकुंभ में सनातन संस्कृति की तीनों परंपराओं के संत पहुंच गए हैं। एक जनवरी को शंभू पंच दशनाम अटल अखाड़े की पेशवाई होगी। बख्शी बांध स्थित अखाड़े से छावनी प्रवेश होगा। इसी तरह सिख समुदाय के इकलौते निर्मल अखाड़े का छावनी प्रवेश 11 जनवरी को होगा।
शाही स्नान की अगुवाई को लेकर अखाड़ों में मतभेद
शाही स्नान को लेकर इस बार विवाद होने की आशंका है। शाही स्नान के लिए सबसे पहले महानिर्वाणी अखाड़ा निकलता रहा है, लेकिन इस बार के शाही स्नान की अगुवाई शैव परंपरा के सबसे बड़े जूना अखाड़े को सौंपने की बात कही जा रही है। इसे लेकर अखाड़ों के संतों में मतभेद है।
पायलट बाबा के शिविर में जापानी साध्वी करेंगी शिव महाशक्ति यज्ञ
अखाड़ा सेक्टर में बड़ी संख्या में विदेशी संत भी पहुंच रहे हैं। जूना अखाड़े के महामंडलेश्वर रहे ब्रह्मलीन पायलट बाबा की शिष्या केको आईकावा ने विशाल छावनी बनाई है। इसमें शिवशक्ति महायज्ञ होगा। इसमें 100 से अधिक जापानी, रूसी और ऑस्ट्रेलियाई संत पहुंचे हैं।