महाकुंभ में श्रद्धालुओं की फर्जी कोविड नेगेटिव रिपोर्ट से संक्रमण दर गिरने पर पीठ थपथपाने वाले अफसरों की मुश्किलें बढ़नी तय हैं। हाईकोर्ट की फटकार के बाद नामित एजेंसी और लैबों ने कोविड जांचों की संख्या अचानक बढ़ाई। फर्जी जांचों से उनका मीटर तो घूमता रहा, लेकिन मेला प्रशासन फर्जीवाड़े से बेखबर रहा। लाखों की भीड़ के बावजूद संक्रमण दर बाकी जिलों की तुलना में कम होने पर उठने वाले सवालों को दबा दिया गया।
कोरोना काल में कुंभ के आयोजन को लेकर काफी खींचतान चली। तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कोविड के फैलाव को देखते हुए श्रद्धालुओं के हरिद्वार आने के लिए सख्त गाइडलाइन भी लागू की। हाईकोर्ट ने भी मेला प्रशासन से प्रतिदिन 50 हजार आरटीपीसीआर जांच करने के निर्देश दिए। हाईकोर्ट के आदेशों के पालन में मेला प्रशासन ने लैबों को अधिक से अधिक जांच करने का दबाव डाला। मेला अवधि में सरकारी और निजी मिलाकर कुल 34 लैब जांच कर रही थीं। इनमें 11 एजेंसियों को मेला स्वास्थ्य विभाग ने नामित किया था। सभी एजेंसियों ने महाकुंभ अवधि में छह लाख से अधिक जांच कर डाली। अफसरों के दबाव से मैक्स कारपोरेट सर्विस, उससे संबद्ध नलवा लैब और लालचंदानी लैब के लिए मुंहमांगी मुराद मिल गई।
तीनों लैबों ने फर्जी नाम, पते और फोन नंबरों से नेगेटिव रिपोर्ट तैयार करनी शुरू कर दी। एक आरटीपीसीआर जांच के 500 रुपये और एंटीजन जांच के 354 रुपये निर्धारित थी। लैब और कंपनी अपना मीटर घुुमाती रही और एक लाख फर्जी नेगेटिव रिपोर्ट बनने से संक्रमण दर प्रदेश के अन्य जिलों से कम हो गई। इससे अफसर खुद की पीठ थपथपाते नजर आए। कुछ लोगों ने संक्रमण की दर कम होने पर सवाल भी उठाए, लेकिन अफसरों ने ध्यान नहीं दिया। शुरुआती जांच में फर्जीवाड़े के खुलासे के बाद लैब और कंपनी के खिलाफ मुकदमा दर्ज होने के बाद वही अफसर मौन हो गए हैं। शासन के आदेश पर जिलाधिकारी ने सीडीओ की अध्यक्षता में जांच कमेटी गठित की है। कमेटी ने जांच शुरू कर दी है। अब देखना है कि जांच में और क्या खुलासा होता है।