दिगंबर अनि अखाड़ा दो लाख से अधिक वैष्णव संतों का सबसे बड़ा अखाड़ा है।इसके 450 से अधिक मठ-मंदिर देश भर में हैं। यह अखाड़ा चार पट्टियों के समूह में गठित है। इस पंरपरा के निर्वाणी और निर्मोही दोनों अखाड़े दिगंबर अनि के सहायक के तौर पर धर्म प्रचार की सुगठित सेना के रूप में काम करते हैं। वैरागी वैष्णव संप्रदाय का श्रीदिगंबर अनि अखाड़ा अपनी विशेषताओं के लिए जाना जाता है।

माथे पर उर्ध्व त्रिपुंड तिलक। गले में गुछरू (गुच्छे) की तरह सजी कंठीमाला, लंबी लटों से शोभित जटाजूट और लकदक श्वेतवस्त्र वाले संड़सा-चिमटाधारी साधु दिगंबर अखाड़े की असली पहचान हैं। यह अखाड़ा वैष्णव संप्रदाय के तीन अखाड़ों में सबसे बड़ा और वेश बाना में निराला है। इस पंरपरा के निर्वाणी और निर्मोही दोनों अखाड़े दिगंबर अनि के सहायक के तौर पर धर्म प्रचार की सुगठित सेना के रूप में काम करते हैं। वैरागी वैष्णव संप्रदाय का श्रीदिगंबर अनि अखाड़ा अपनी विशेषताओं के लिए जाना जाता है। इसका सिर्फ नाम दिगंबर है, जिसके साधु वस्त्रधारी होते हैं, नागा वैरागी नहीं। दिगंबर साधु खास तरीके का सफेद अंगरख बांधने के साथ ही धोती लपेटते हैं। इस परंपरा के रामानंदी संन्यासी माथे पर उर्ध्व त्रिपुंड यानी तिलक सज्जा के लिए भी जाने जाते हैं। अखाड़े के सचिव नंदराम दास अनि का मतलब समूह या छावनी बताते हैं। इसका धर्म ध्वज पांच रंगों का होता है, जिस पर रामभक्त हनुमानजी विराजते हैं। सचिव नंदराम दास के अनुसार देशभर में इस अखाड़े के करीब 450 से अधिक मठ-मंदिर हैं। चित्रकूट, अयोध्या, नासिक, वृंदावन, जगन्नाथपुरी और उज्जैन में इस अखाड़े के श्रीमहंत भी हैं। अखाड़े के दूसरे सचिव श्रीमहंत सत्यदेव दास के मुताबिक मौजूदा समय में दो लाख से अधिक वैष्णव संत हैं।
महाकुंभ के समय ही होता है श्रीमहंत का चुनाव
दिगंबर अनि अखाड़े में चुनाव के लिए लोकतांत्रिक प्रक्रिया अपनाई जाती है। सर्वोच्च पद श्रीमहंत का है, जिसका हर 12 वर्ष पर महाकुंभ के दौरान ही चुनाव होता है। इस अखाड़े के कई उप अखाड़े भी गठित हैं। नंदराम दास बताते हैं कि खाकी अखाड़ा, हरिव्यासी अखाड़ा, संतोषी अखाड़ा, निरावलंबी अखाड़ा, हरिव्यासी निरावलंबी अखाड़ा इसी के अंग के रूप में काम करते हैं।