गंगा को साफ सुथरा बनाया जा सके, इसके लिए साल 2014 में शुरू किए गए नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा अभियान के तहत 20 हजार करोड़ रुपये खर्च करके सैकड़ों योजनाएं धरातल पर उतरी जा रही हैं। अब स्कूली बच्चों को न सिर्फ पर्यावरण संरक्षण के बारे में जानकारी दी जा रही, वरन स्कूली बच्चों को गंगा नदी की जैव विविधता के बारीकियों से भी रूबरू कराया जा रहा है।
विस्तारराष्ट्रीय नदी गंगा के संरक्षण और उसकी जैव विविधता को सुरक्षित करने को लेकर जहां केंद्र सरकार नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा (एनएमसीजी) जैसी योजनाएं संचालित कर रहा, वहीं राष्ट्रीय नदी को साफ सुथरा और निर्मल बनाया जा सके, इसके लिए उत्तराखंड, यूपी, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों स्कूली बच्चों की भी मदद ली जा रही है।
भारतीय वन्यजीव संस्थान के नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा यूनिट की ओर से उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में गंगा नदी के किनारे स्थित स्कूली बच्चों को न सिर्फ पर्यावरण संरक्षण के बारे में जानकारी दी जा रही, वरन स्कूली बच्चों को गंगा नदी की जैव विविधता के बारीकियों से भी रूबरू कराया जा रहा है।
संस्थान की वरिष्ठ वैज्ञानिक और नेशनल मिशन फार क्लीन गंगा की नोडल अधिकारी डॉ. रुचि बडोला के मुताबिक, फिलहाल देश के 3,264 स्कूली बच्चों को गंगा की जैव विविधता के साथ ही गंगा नदी में पाई जाने वाली कई प्रजातियों के जलीय जंतुओं, पक्षियों के साथ गंगा नदी में पाई जाने वाली वनस्पतियों के बारे में भी जागरूक किया गया है।
गंगा को साफ करने में खर्च हो रहे 20,000 करोड़
गंगा को साफ सुथरा बनाया जा सके, इसके लिए साल 2014 में शुरू किए गए नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा अभियान के तहत 20 हजार करोड़ रुपये खर्च करके सैकड़ों योजनाएं धरातल पर उतरी जा रही हैं। जहां उत्तराखंड, बिहार, झारखंड, यूपी और पश्चिम बंगाल में गंगा के किनारे 265 घाट बनाए जा रहे और 92 सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाए जा रहे, वहीं, नदी के किनारे 1,34,106 हेक्टेयर जमीन पर वनीकरण का काम कराया जा रहा है। वनीकरण का डीपीआर देहरादून स्थित फॉरेस्ट इंस्टीट्यूट के विशेषज्ञों की ओर से तैयार किया गया है।
गंगा नदी के जलीय जंतुओं को सुरक्षित करने के लिए भारतीय वन्यजीव संस्थान और सिफरी के विशेषज्ञों की मदद ली जा रही है। इसके लिए देहरादून स्थित भारतीय वन्यजीव संस्थान और सेंट्रल इंलैंड फिशरी रिसर्च इंस्टीट्यूट (सिफरी) के
विशेषज्ञों की भी मदद ली जा रही है। वन्यजीव संस्थान के वन्यजीव विज्ञानियों की ओर से उत्तराखंड से लेकर पश्चिम बंगाल तक जलीय जंतुओं के संरक्षण को लेकर शोध करने के साथ संरक्षण को लेकर कई योजनाएं संचालित की जा रही है।