हाईकोर्ट ने कहा कि न्यास (ट्रस्ट) उनसे महीने में एक दिन मंदिर परिसर में कर्मकांड के प्रशिक्षण का काम भी ले सकता है। कोर्ट ने आचार्य को यह छूट भी दी है कि वे न्यास को सूचित कर स्वेच्छा से अपने दायित्व का त्याग कर सकते हैं।

Order to remove Acharya performed night offerings decorations and aarti Kashi Vishwanath Temple cancelled

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने काशी विश्वनाथ मंदिर में रात्रि भोग, शृंगार और आरती करने वाले आचार्य डॉ. देवी प्रसाद द्विवेदी को बड़ी राहत दी है। कोर्ट ने मुख्य कार्यपालक अधिकारी की ओर से आचार्य को हटाने के आदेश को रद्द कर दिया है।

न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी की एकलपीठ ने डॉ. देवी प्रसाद द्विवेदी की याचिका का निस्तारण करते हुए निर्देश दिया कि याची को बिना किसी मानदेय के सुगमतापूर्वक शृंगार, आरती और पूजन करने की अनुमति दी जाए।

डॉ. देवी प्रसाद द्विवेदी की नियुक्ति काशी विद्वत परिषद की संस्तुति पर 13 जनवरी 1994 को की गई थी। आरोप है कि एक बार उन्होंने दर्शनार्थियों को रोक कर एक उच्च अधिकारी को पूजा कराने से इन्कार कर दिया। इसके बाद उन पर अवैध नियुक्ति और अनियमितता के आरोप लगे। 

उन्हें हटाने के लिए यह तर्क दिया गया कि 24 जून 2018 के बाद उनकी सेवा का विस्तार नहीं किया गया था और वे 60 वर्ष से अधिक के हैं इसलिए मानदेय व पूजन नहीं कर सकते।

हाईकोर्ट ने न्यास के दोनों तर्कों को अस्वीकार कर दिया। कोर्ट ने कहा कि 60 साल बाद पूजा पर रोक का कोई नियम नहीं है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि आचार्य की तुलना मंदिर के कर्मचारियों से नहीं की जा सकती क्योंकि आचार्य कोई पद नहीं बल्कि एक परंपरागत दायित्व है। कोर्ट ने आचार्य के खिलाफ दिए गए आदेश को पूर्वाग्रह ग्रसित मानते हुए रद्द कर दिया।

कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि आचार्य का पूरा सम्मान किया जाए और वह चाहें तो अपने लिए एक सहायक भी रख सकते हैं। आचार्य हफ्ते में तीन दिन सोमवार, बुधवार और गुरुवार को रात्रि भोग, शृंगार, आरती व पूजन कर सकते हैं।

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