शिव और श्रीराम एक दूसरे के उपासक हैं। काशी में मरने वालों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस मोक्ष का आधार रामनाम बनता है, जो मृतकों के कान में स्वयं बाबा विश्वनाथ माता पार्वती के कहने पर देते हैं।

काशी ऐसे ही मुक्तिधाम नहीं कही जाती है। यहां मृत्यु पाने वालों के कान में काशीपुराधिपति बाबा विश्वनाथ रामनाम का तारक मंत्र देते हैं और उनको जन्म व मृत्यु के बंधन से मुक्त करते हैं। भगवान शिव प्रभु श्रीराम के और प्रभु श्रीराम शिव के उपासक हैं। उसी रामनाम का जप पूरा जगत करता है। कई धार्मिक ग्रंथों में इसका विस्तृत विवरण मिलता है। काशी में मरने वालों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस मोक्ष का आधार रामनाम बनता है, जो मृतकों के कान में स्वयं बाबा विश्वनाथ माता पार्वती के कहने पर देते हैं। यह परंपरा तबसे चली आ रही है जबसे काशी महाश्मशान के रूप में पूजित है। शिवमहापुराण और स्कंदपुराण के काशी खंडोक्त में यह उद्धृत है। काशी विश्वनाथ धाम न्यास परिषद के अध्यक्ष प्रो. नागेंद्र पांडेय ने कहा कि स्कंदपुराण के काशी खंडोक्त में कहा गया है कि काशी परिक्षेत्र में जिसकी भी मृत्यु होती है, उसे मोक्ष मिलता है। बाबा विश्वनाथ अंतिम समय में रामनाम का ‘राम रामेति रामेति’ तारक मंत्र देते हैं। इसी को आधार मानकर सनातनी काशी में आते हैं और मोक्ष की कामना करते हैं। काशी विद्वत परिषद के महामंत्री प्रो. रामनारायण द्विवेदी ने बताया कि भगवान शिव और प्रभु श्रीराम एक-दूसरे के उपासक हैं। उसी रामनाम के जप से जगत का उद्धार होता है। प्रख्यात ज्योतिषविद प्रो.चंद्रमौलि उपाध्याय ने बताया कि शास्त्रों में ””काश्यां मरणान्मुक्ति”” कहा गया है। अर्थात काशी में मरने वालों को मुक्ति मिलती है।