शैव परंपरा के श्री तपोनिधि आनंद अखाड़े ने हाथी, घोड़ों, रथ, ऊंट पर सवार नागा संन्यासियों, आचार्य, मंडलेश्वर, महामंडलेश्वरों ने बाजे-गाजे के साथ निकले तो उनकी झलक पाने के लिए सड़कों के किनारे श्रद्धालुओं की कतारें लग गईं।

भगवान सूर्य को अपना इष्टदेव मानने वाले तपोनिधि आनंद अखाड़े के संन्यासियों ने सुसज्जित रथों पर अस्त्र-शस्त्र के साथ सोमवार को संगम की रेती पर बनी अपनी भव्य छावनी में प्रवेश किया । शैव परंपरा के श्री तपोनिधि आनंद अखाड़े ने हाथी, घोड़ों, रथ, ऊंट पर सवार नागा संन्यासियों, आचार्य, मंडलेश्वर, महामंडलेश्वरों ने बाजे-गाजे के साथ निकले तो उनकी झलक पाने के लिए सड़कों के किनारे श्रद्धालुओं की कतारें लग गईं। छावनी प्रवेश शोभायात्रा में बाजेगाजे के साथ सबसे आगे धर्म ध्वजा चल रही थी। इसके बाद इष्टदेव भगवान सूर्य का विग्रह लेकर साधु रथों पर निकले। घोड़ों पर डंका-निशान शोभायात्रा की छटा को बढ़ा रहा था। इस कारवां में धर्म के रक्षक नागा संन्यासियों की टोली हाथों में भाला, बरछी, तलवार लेकर लेकर चल रही थी। काली मार्ग स्थित आनंद अखाड़े की छावनी में प्रवेश के बाद निशान स्थापित किया गया।
मेला प्रशासन ने पुष्पवर्षा कर किया आनंद अखाड़े का स्वागत
श्री तपोनिधि आनंद अखाड़े की छावनी प्रवेश यात्रा नागा संन्यासियों के क्रम में आखिरी प्रवेश यात्रा थी। इसके बाद वैष्णव बैरागी अखाड़े, उदासीन और निर्मल अखाड़े का छावनी प्रवेश परंपरा और तिथि क्रम के हिसाब से होगा। आनंद अखाड़े की छावनी प्रवेश यात्रा के बाद शाम को संगम क्षेत्र में अखाड़ा परिसर में पहुंच कर सबसे पहले धर्म ध्वजा को स्थापित किया।