हरिद्वार की पावन तपोभूमि पर अनादि ब्रह्मा, विष्णु और महेश के चरण पड़े। भगवान शंकर के लिए कुंभ नगरी ससुराल ही है। माता सती को ब्याहने के लिए वे यहीं आए। पार्वती ने भी गौरी कुंड पर तपस्या की। त्रिदेवों के चरण स्पर्श कर यह अमृत धारा महातीर्थ बन गई। कुंभ पर्व बार-बार उस प्राचीन वैभव की याद ताजा करता है।

काल के प्रारंभिक खंड में महाप्रतापी राजा श्वेत ने वर्तमान हरकी पैड़ी के समीप पर्वत पर वर्षों बैठकर तपस्या की थी। उनका शरीर जर्जर होता गया। राजा श्वेत हड्डियों का ढांचा बन गए, लेकिन तप न छोड़ा। उनकी बेहद कठिन तपस्या को देखकर त्रिदेव भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने एक साथ आकर श्वेत को दर्शन दिए। स्कंद पुराण के केदारखंड में इसका व्यापक उल्लेख है।

भगवान विष्णु के चरण ”हरिचरण” के रूप में आज भी यहां विद्यमान हैं। ब्रह्मा के आने से ब्रह्मकुंड बना जो सतयुगीन तीर्थ है। भगवान शिव की तो यह नगरी लीलाभूमि ही है। भगवान शिव के आगमन से हरिद्वार को ”हरद्वार” एवं भगवान विष्णु के आगमन से ”हरिद्वार” कहा जाता है।

ब्रह्मा के नाम पर बने ब्रह्मकुंड अमृत छलका, जो कुंभ मेलों का कारण बना। इस प्रकार कुंभनगरी अनादि त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और शिव से जुड़ गई। यह नगरी भगवान शिव के धाम केदारनाथ और भगवान विष्णु के धाम बदरीनाथ जाने का द्वार है। इसीलिए प्राचीन नगरी के नाम के साथ ”द्वार” जुड़ गया। गंगा नदी के आगमन से यह तपोभूमि और भी पवित्र हो गई।

हरिद्वार कुंभ मेले की व्यवस्थाओं के लिए 62 करोड़ मंजूर

मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के निर्देश पर शासन ने कुंभ मेले की व्यवस्थाओं के लिए 62 करोड़ रुपये की स्वीकृति दे दी है। स्वीकृति धनराशि में सर्विलांस, चिकित्सा व्यवस्था व अन्य कार्यों के लिए पहली किस्त के रूप में 36.90 करोड़ रुपये जारी भी कर दिए गए हैं।

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