संन्यासी परंपरा के सभी सातों अखाड़ों में नागा संन्यासी, महामंडलेश्वर समेत हजारों सदस्य होते हैं। अखाड़े अपने इस विशाल परिवार के संचालन के लिए आठ महंतों वाली अष्टकौशल पर निर्भर होते हैं। अष्टकौशल में शामिल होने वाले आठ महंतों का बाकायदा चुनाव होता है। इनकी मदद के लिए आठ उप महंत भी होते हैं।

President rule imposed in Akharas, new government will be elected before the conclusion of Mahakumbh

अखाड़ों के कामकाज को चलाने वाली सरकार का कार्यकाल महाकुंभ आरंभ होने के साथ खत्म हो गया। अखाड़ों की आंतरिक व्यवस्था चलाने वाली सभी कार्यकारिणी भी भंग हो गईं। उनकी जगह राष्ट्रपति शासन की तर्ज पर पंचायती व्यवस्था बनाई गई है। अब कुंभ तक अखाड़े का कामकाज इसी रीति से चलेगा। महाकुंभ के समापन से पहले अखाड़े फिर से अपनी नई सरकार चुनेंगे। उनका कार्यकाल अगले छह साल का होगा। संन्यासी परंपरा के सभी सातों अखाड़ों में नागा संन्यासी, महामंडलेश्वर समेत हजारों सदस्य होते हैं। अखाड़े अपने इस विशाल परिवार के संचालन के लिए आठ महंतों वाली अष्टकौशल पर निर्भर होते हैं। अष्टकौशल में शामिल होने वाले आठ महंतों का बाकायदा चुनाव होता है। इनकी मदद के लिए आठ उप महंत भी होते हैं। निरंजनी अखाड़े के महंत शिव वन के मुताबिक सोलह सदस्यों की कमेटी ही सचिव समेत अन्य पदाधिकारी के चयन पर निर्णय लेती है। अष्ट कौशल इनकी मदद से अखाड़ों के सभी आध्यात्मिक एवं आर्थिक कामकाज संचालित करते हैं। पैसों का पूरा हिसाब-किताब भी अष्ट कौशल ही रखते हैं। प्रयागराज में अखाड़ों की छावनी स्थापित होने के साथ ही अष्ट कौशल समेत अन्य कार्यकारिणी कार्यकाल पूरा होने के कारण स्वत: भंग हो गईं। पूरे महाकुंभ तक पंचायती परंपरा के मुताबिक फैसले लिए जाएंगे। इसके लिए धर्म ध्वजा के पास ‘चेहरा-मोहरा’ स्थापित हुआ है। जूना अखाड़े के महंत रमेश गिरि के मुताबिक अखाड़ों के छावनी प्रवेश करते ही कार्यकारिणी का कार्यकाल पूरा मान लिया जाता है। इसके बाद कुंभ मेले की पूरी व्यवस्था ‘चेहरा-मोहरा’ के जरिये होती है। कुंभ की व्यवस्थाएं देखने के लिए कार्यकारिणी बनती है। इसका संचालन प्रधान करते हैं। चेहरा-मोहरा में सभी महंत बैठकर आवश्यक निर्णय लेते हैं। कुंभ में ही यह स्थापित होता है। महाकुंभ समापन के पहले अष्टकौशल बनाए जाएंगे। इनका कार्यकाल अगले छह साल का रहेगा।

अखाड़ों में भी चलता है पंचायती राज

अखाड़ों में अहम निर्णय पंचों के माध्यम से होता है। इसी वजह से पंचायती अखाड़ा, महानिर्वाणी अखाड़ा, श्रीशंभू पंचायती अटल अखाड़ा, तपोनिधि पंचायती श्रीनिरंजनी अखाड़ा, पंचायती अखाड़ा आनंद के नाम से पहले पंचायती शब्द जुड़ा हुआ है। निरंजनी अखाड़ा के महंत शिव वन के मुताबिक अखाड़ों की परंपरा में आम सहमति से निर्णय लिए जाने की परंपरा रही है। सभी कार्य और निर्णय पारदर्शी तरीके से लिए जाते हैं। खास तौर से शिकायत मिलने पर किसी संन्यासी के खिलाफ कार्रवाई पंचायत के माध्यम से ही होती है।

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