पुजारी लीलावती के पुत्र सत्येन्द्र उपाध्याय ने बताया कि उनके पूर्वज को सपने में (पांडव अज्ञातवास) पांडववाली स्रोत से शिवलिंग को लाकर स्थापित करने को कहा गया।
पांडवों के अज्ञातवास गुजारने वाले स्थान से लाया गया शिवलिंग लोगों की आस्था का केंद्र बन गया है। सपने में आए शिवलिंग को एक व्यक्ति ने जंगल से बेलगाड़ी में लाकर स्थापित किया था। तब से ही मंदिर में लोगों की श्रद्धा बढ़ती चली आ रही है। महाशिवरात्रि पर मंदिर में उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के लोग जलाभिषेक करते हैं। मंदिर में स्थापित शिवलिंग के बारे में मान्यता है कि शिवलिंग प्राचीन काल के प्रस्तर शिल्प का उत्कृष्ट नमूना है। पुजारी लीलावती के पुत्र सत्येन्द्र उपाध्याय ने बताया कि उनके पूर्वज को सपने में (पांडव अज्ञातवास) पांडववाली स्रोत से शिवलिंग को लाकर स्थापित करने को कहा गया। इस पर अगले दिन उपाध्याय परिवार ग्रामीणों को लेकर बेलगाड़ी से शिवलिंग को लेने पांडववाली स्रोत पहुंचे, लेकिन वह लगभग 5 फीट गोलाई और लगभग 8 फीट ऊंचाई के शिवलिंग को लाख कोशिशों के बाद भी हिला नहीं सके। निराश होकर सभी लोग अपने घरों को लौट गए। उसी दिन पुजारी परिवार के उसी व्यक्ति के सपने में अकेले ही शिवलिंग लेकर आने का आदेश हुआ।
महाशिवरात्रि पर जलाभिषेक के लिए पहुंचते हैं शिवभक्त
दूसरे दिन अकेले सुनसान जंगल में बेलगाड़ी लेकर शिवलिंग के पास पहुंचे। शिवलिंग पर हाथ लगाते ही शिवलिंग हिलने लगा और वह शिवलिंग को अकेले ही बेलगाड़ी में रखकर लालढांग लाए और स्थापित कर दिया। तब से आज तक महाशिवरात्रि पर बड़ी संख्या में शिवभक्त जलाभिषेक करते आ रहे हैं।
बताते हैं कि जिस स्थान से शिवलिंग लाया गया। वहां पांडवों ने अपना अज्ञातवास बिताया था। इसके चलते इसका नाम पांडववाली स्रोत पड़ा, जो वर्तमान में राजाजी टाइगर रिजर्व के जंगल में आता है, जो रिजर्व फॉरेस्ट का क्षेेत्र है। इसके कारण अब उस स्थान पर सामान्य रूप से आने-जाने में पूर्ण रूप से प्रतिबंध है।