प्रसिद्ध इतिहासकार विनोद पचौली के अनुसार, पद्म पुराण में भगवान श्रीराम के पिहोवा आगमन का उल्लेख मिलता है। उन्होंने बताया कि इसे श्रीराम के गुरु महर्षि वशिष्ठ की तपोस्थली भी माना जाता है। आज भी यहां बने वशिष्ठेश्वर महादेव मंदिर के समीप एक गुफा है।

धर्मनगरी के पिहोवा में न सिर्फ भगवान श्रीराम के चरण पड़े थे, बल्कि यह पावन भूमि उनके गुरु ऋषि वशिष्ठ की तपोस्थली भी रही है। मान्यता है कि महर्षि वशिष्ठ ने यहां एक लिंग की स्थापना की थी, जो आज भी वशिष्ठेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है। मंदिर के साथ ही एक पौराणिक गुफा है, जिसे महर्षि वशिष्ठ की तपोस्थली माना जाता है। प्रसिद्ध इतिहासकार विनोद पचौली के अनुसार, पद्म पुराण में भगवान श्रीराम के पिहोवा आगमन का उल्लेख मिलता है। पिहोवा का नाम ही पृथुदक रहा है, जो कालांतर में बदल गया। उन्होंने बताया कि इसे श्रीराम के गुरु महर्षि वशिष्ठ की तपोस्थली भी माना जाता है। आज भी यहां बने वशिष्ठेश्वर महादेव मंदिर के समीप एक गुफा है। इसका द्वार काफी छोटा है और ऊपर से ईंटों से बना हुआ है। साल 1985 में मंदिर के साथ एक पार्क बनाने की योजना थी। उस समय खोदाई के दौरान यहां एक चौखट बरामद हुई थी, जो काफी छोटी थी। इसके शीर्ष पर भगवान शिव उत्कीर्ण है। चौखट के दोनों ओर तीन-तीन देवियों की मूर्तियां बनी हुई हैं। मंदिर के साथ ही भगवान शिव को समर्पित एक और मंदिर है। यह मंदिर पुरातत्व विभाग के अधीन है। वशिष्ठेश्वर महादेव मंदिर के द्वार पर गरुण ध्वज चौखट लगी हुई है। यह चौखट 14वीं शताब्दी की बताई जा रही है। मंदिर के द्वार पर लगी चौखट पर गरुड़ सवार भगवान विष्णु शीर्ष पर विराजमान हैं। चौखट के दोनों ओर तीन देवियाें की मूर्ति बनाई गई है।