काशी खंड के अनुसार बाबा विश्वनाथ के प्रिय सखा श्रीहरि विष्णु कहते हैं, हे! अविमुक्त! तुम्हारे क्षेत्र में सबको मुक्ति मिलती है। काशी में मैं समस्त पाषाण-प्रतिमाओं में विराजमान हूं।
कण-कण शंकर की नगरी के रोम-रोम में राम बसते हैं। संपूर्ण काशी शिवमय ही नहीं राममय भी है। पंचक्रोशोत्मक काशी भगवान शिव का शाश्वत लिंग और ज्योति स्वरूप मानी जाती है। शिवपुराण के अनुसार भगवान शिव के आराध्य प्रभु श्रीराम और भगवान शिव के आराध्य भगवान राम हैं। संपूर्ण संसार जहां विश्वेश्वर को पूजता है, वहीं स्वयं विश्वेश्वर मुक्तिदायक अविमुक्तेश्वर लिंग को पूजते हैं। काशी खंड के अनुसार बाबा विश्वनाथ के प्रिय सखा श्रीहरि विष्णु कहते हैं, हे! अविमुक्त! तुम्हारे क्षेत्र में सबको मुक्ति मिलती है। काशी में मैं समस्त पाषाण-प्रतिमाओं में विराजमान हूं। काशी क्षेत्र में नारायण रूप में मेरे पांच सौ विग्रह, जलाशयन रूप में एक सौ, कच्छप रूप में तीस, मत्स्य रूप में बीस, गोपाल रूप में 108, बौद्ध रूप में सहस्र, परशुराम रूप में 30 विग्रह और राम-रूप में 101 विग्रह हैं। मुक्तिमंडप (ज्ञानेश्वर मीरघाट क्षेत्र ) के मध्य में मैं विष्णु रूप में अकेला ही हूं।
काशी में विराजमान हैं तीनों युग
शास्त्रों के अनुसार भगवान शिव की त्रिशूल पर स्थित काशी देहधारियों को तीनों ऋणों से मुक्त करती है। काशी को आप जिस रूप में देखेंगे, उसी रूप में नजर आती है। काशी में सतयुग, त्रेता और द्वापर युग समाहित हैं। त्रेतायुग में इक्ष्वांकु वंश का काशी प्रेम राजा इक्ष्वांकु से प्रारंभ होकर भगवान राम तक नजर आता है। सभी शिवस्वरूप में काशी में विराजमान हैं।