माघ मेले के प्रथम स्नान पर्व मकर संक्रांति में में अब सिर्फ दो दिन ही शेष हैं, लेकिन कोरोना संक्रमण के खौफ पर आस्था भारी पड़ने लगी है। कोरोना के डर को पीछे छोड़कर कल्पवासियों के शिविर आकार लेने लगे हैं। त्रिवेणी, काली मार्ग से लेकर ओल्ड जीटी-मोरी मार्ग तक आध्यात्मिक संस्थाओं के शिविरों में संतों-भक्तों के डेरे लगने से हलचल बढ़ गई है।इसके बीच न किसी केचेहरे पर कोरोना का भय है न मन में किसी तरह की चिंता। है, तो सिर्फ संगम की रेती पर अपनी-अपनी कामनाओं और मनौतियों को लेकर महीने भर के जप, तप और ध्यान की लालसा। ऐसे में रेती पर पर बिना किसी परवाह के लोग घर-बार छोड़कर पहुंचने लगे हैं।
संतों-भक्तों के शिविरों में प्रथम स्नान पर्व को लेकर तैयारियां अंतिम दौर में हैं। संगम में डुबकी लगाने के और कल्पवास करने के लिए लोग मंगलवार से ही आने लगेंगे।इस बार पुरुषोत्तम मास लगने की वजह से माघ मेले में कल्पवास की शुरुआत 28 जनवरी से होगी, लेकिन हजारों की तादाद में लोग मकर संक्रांति से ही जप, तप, ध्यान शुरू कर देंगे। इसके लिए कल्पवासी आने लगे हैं। लेकिन, किसी के भी चेहरे पर कोरोना संक्रमण को लेकर डर नहीं दिख रहा है। हालत यह है कि लोग बिना मास्क के ही मेला क्षेत्र से लेकर शिविरों तक भ्रमण कर रहे हैं।अभी तक मेला क्षेत्र के ज्यादातर शिविरों या प्रवेश मार्गों पर कहीं भी सैनिटाइजेशन भी नहीं कराया जा रहा है। इतना ही नहीं, सोशल डिस्टेंसिंग के पालन के लिए दूरियां भी नदारद हैं। चेहरे पर मास्क न होने पर बहरिया की मृदुला देवी कहती हैं कि वह भगवान के दर्शन और उनके ध्यान के लिए आई हैं। उन्हें पूरा विश्वास है कि कोरोना इस संगम पर नहीं आएगा।यहां वह बिना किसी चिंता के महीने भर कल्पवास करेंगी। इसी तरह कल्पवास के लिए पहुंचे सेवानिवृत्त दारोगा राम अधार पांडेय भी कोरोना संक्रमण से बेफिक्र हैं। उनका कहना है कि कोरोना संक्रमण उन तक नहीं पहुंचेगा। वह पूरे संयम और धैर्य के साथ इस मेले में जप, तप के लिए आए हैं।
