भू कानून समिति के अध्यक्ष ने कहा ने कहा कि उद्योगों के नाम पर ली गई जमीन की जांच के लिए टास्क फोर्स बने। सुभाष कुमार ने अमर उजाला से खास बातचीत में कहा कि समिति अपनी सिफारिशों में तीन बातों का खास ख्याल रखेगी। इनमें पहला ऐसी कोई नीति न बने जिससे राज्य में निवेश ही बाधित हो जाए।

उत्तराखंड राज्य गठन के बाद से अब तक भू कानून के प्रावधानों का लाभ लेकर बड़े पैमाने पर खरीदी गई भूमि की गहराई से पहचान होगी। भू कानून समिति सरकार से एक टास्क फोर्स बनाने की सिफारिश करेगी। भू समिति अपनी सिफारिशों को अंतिम रूप दे रही है। 23 अगस्त की बैठक में ड्राफ्ट तैयार हो जाएगा।

समिति के अध्यक्ष सुभाष कुमार ने अमर उजाला से खास बातचीत में कहा कि समिति अपनी सिफारिशों में तीन बातों का खास ख्याल रखेगी। इनमें पहला ऐसी कोई नीति न बने जिससे राज्य में निवेश ही बाधित हो जाए। दूसरा, निवेश व अन्य प्रायोजनों के नाम पर खरीदी गई भूमि का दुरुपयोग नहीं होना चाहिए और तीसरा, उत्तराखंड का नागरिक भूमिहीन न हो।

समिति हिमाचल की तर्ज पर भू कानून में यह प्रावधान करने की सिफारिश करेगी कि, किसी उद्योग व प्रायोजन के लिए कितनी भूमि की जरुरत होगी, यह तय करने का अधिकार विभागों को मिले। भूमि के उपयोग की समय सीमा भी तय होनी चाहिए। इस सीमा में अगर क्रेता कोई उद्योग नहीं लगाता तो सरकार वह जमीन वापस ले लेगी।

देहरादून, नैनीताल समेत सात जिलों से समिति को जो सूचनाएं प्राप्त हुईं, वे भूमि के दुरुपयोग की तस्दीक कर रही हैं। कुमाऊं मंडल के पांचों जिलों में 20 से 30 प्रतिशत मामलों में या तो भूखंड लेने के बाद उन्हें खाली रखा गया या फिर जिस प्रयोजन से जमीन खरीदी गई, वहां दूसरे काम किये गए। उद्योग लगाने के लिए मिली जमीन पर आवासीय प्लाटिंग कर बेच दिया गया। समिति का मानना है कि भूमि के दुरुपयोग का यह मामला और बड़ा हो सकता है।

ताकि राज्य में कोई मायाराम न बन जाए

अरविंद मायाराम 1978 बैच के रिटायर्ड आईएएस अधिकारी टिहरी के मूल निवासी हैं, लेकिन वह समर्थ होने के बावजूद भूमि नहीं खरीद पाए। भू कानून में यह प्रावधान है कि राज्य में जमीन खरीदने के लिए कृषि भूमिधर होने का प्रमाणपत्र होना चाहिए। समिति के अध्यक्ष का कहना है कि राज्य के लोगों के पास इतनी कृषि भूमि तो होनी चाहिए कि उनकी भावी पीढ़ियां समर्थ होने पर यहां जमीन खरीद सकें।

12.50 एकड़ भू-सीमा पर विवाद
हिमाचल राज्य में उद्योगों को जितनी चाहे उतनी भूमि खरीदने की इजाजत है। समिति हिमाचल की तर्ज पर उद्योगों को भूमि देने की सिफारिश कर रही है। ऐसी स्थिति में 12.50 एकड़ से अधिक भूमि खरीद की अनुमति के शासनादेश को बरकरार रखना है या नहीं इस पर मंथन जारी है।

हालांकि ज्यादातर सदस्य इससे जुड़े दोनों शासनादेशों को रद करने के पक्ष में हैं। एक मत यह भी है कि सीलिंग को बरकरार रखते हुए शेष भूमि को लीज पर लेने का प्रावधान हो। इससे भूमिधर का जमीन पर मालिकाना हक बना रहेगा। दूसरा मत उद्योगों को ढील देते हुए बाकी प्रायोजनों के लिए भूमि खरीद की सीमा तय हो।

By Tarun

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