अर्थव्यवस्था में सुधार के लिए अब सरकार के पास अपने आर्थिक संसाधनों में बढ़ोतरी करने के सिवाय कोई विकल्प नहीं रह गया है। फिलहाल सरकार के पास अपनी जरूरतों को पूरा करे के लिए केंद्र सरकार का दरवाजे पर फरियाद लगाने के सिवाय दूसरा विकल्प नहीं हैं।

देहरादून और हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में मुख्य सचिवों की कांफ्रेंस में कई राज्यों की डगमगाती अर्थव्यवस्था ने हुक्मरानों और नीति नियंताओं को गंभीर चिंतन करने पर मजबूर कर दिया है। सीमित संसाधनों वाले उत्तराखंड राज्य की वित्तीय सेहत के भी बहुत सुखद हालात नहीं हैं।
झारखंड और छत्तीसगढ़ राज्य के साथ अस्तित्व में आए उत्तराखंड सरकार के कदम पिछले दो दशकों में लिए गए भारी भरकम कर्ज से लड़खड़ा रहे हैं। यदि कर्ज को औसतन प्रतिव्यक्ति के हिसाब से आंके तो उत्तराखंड पर झारखंड और छत्तीसगढ़ से दोगुने से अधिक कर्ज चढ़ा है। इस बोझ को उतारने और उसका ब्याज चुकाने के लिए प्रदेश सरकार को अपनी क्षमताओं से बढ़कर प्रदर्शन करना होगा।
वित्तीय मामलों के जानकारों के मुताबिक, अर्थव्यवस्था में सुधार के लिए अब सरकार के पास अपने आर्थिक संसाधनों में बढ़ोतरी करने के सिवाय कोई विकल्प नहीं रह गया है। फिलहाल सरकार के पास अपनी जरूरतों को पूरा करे के लिए केंद्र सरकार का दरवाजे पर फरियाद लगाने के सिवाय दूसरा विकल्प नहीं हैं।
धर्मशाला पिछले दिनों हुई मुख्य सचिवों की कांफ्रेंस में राज्यों के वित्तीय स्थिति की जो तस्वीर बयान की गई है, उसमें उत्तराखंड के लिए प्रतिबद्ध खर्च सबसे बड़ी चुनौती है। केंद्र सरकार के वित्तीय मामलों के विशेषज्ञों ने राज्यों की माली हालत के बारे में जो आंकड़े दिए, वे वास्तव में चौंकाने के साथ चिंता में डालने वाले हैं।