उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय और मानव अधिकार संरक्षण समिति के संयुक्त तत्वावधान में मानव अधिकारों के संरक्षण में संस्कारों की भूमिका विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। वेद विभाग के डॉ. अरुण कुमार मिश्रा ने मंत्रोचारण से वेबिनार का शुभारंभ किया।
न्यायमूर्ति, यूसी ध्यानी (सेवानिवृत्ति) अध्यक्ष उत्तराखंड लोक सेवा अभिकरण ने बतौर मुख्य अतिथि कहा कि माता-पिता के संस्कार बच्चे को भविष्य का मार्ग दिखाते हैं। माता-पिता स्वयं मर्यादित और संस्कार वाला जीवन जिएं। माता-पिता युवाओं को संस्कारों की शिक्षा देने वाले प्रथम गुरु होते है। संस्कार के बिना मर्यादा वाला जीवन नहीं बन सकता।
उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर देवी प्रसाद त्रिपाठी ने कहा कि मानव अधिकार की रक्षा हमारी संस्कृति का अहम हिस्सा है। हमारी परंपराओं में हमेशा व्यक्ति के जीवन निमित्त समता, समानता की स्वीकृति मिली हुई है। मानव अधिकार संरक्षण समिति के राष्ट्रीय अध्यक्ष मधुसूदन आर्य ने कहा कि मानवाधिकार का संबंध समस्त मानव जाति से है। जितना प्राचीन मानव है, उतने ही पुरातन उसके अधिकार भी हैं।
विश्वविद्यालय के कुल सचिव गिरीश कुमार अवस्थी कहा कि मानव अधिकार और शिक्षा एक दूसरे से घनिष्ठ रूप से जुड़े हैं। मानव अधिकारों को समाज में स्थापित करने के लिए यह जरूरी है कि मानवीय गरिमा और प्रतिष्ठा के बारे में जनजागरूकता लाई जाए। इस मौके पर समिति की राष्ट्रीय महिला अध्यक्ष डा. सपना बंसल, डा. लक्ष्मी नारायण जोशी, एसआर गुप्ता, राजीव राय, अनिल कंसल, कमला जोशी, नीलम रावत, शोभा शर्मा आदि मौजूद रहे।