हरिद्वार में यूपी शिया वक्फ बोर्ड के पूर्व चेयरमैन जितेंद्र नारायण त्यागी (पहले वसीम रिजवी) ने संन्यास धारण करने के लिए शांभवी पीठाधीश्वर व शंकराचार्य परिषद के अध्यक्ष स्वामी आनंद स्वरूप के साथ अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष से भेंट की। अखाड़ा परिषद ने भी सभी अखाड़ों से वार्ता करने की बात कही है।
संत समाज से मुलाकात करते जितेंद्र नारायण त्यागी

इस्लाम छोड़कर हिंदू धर्म अपनाने वाले यूपी शिया वक्फ बोर्ड के पूर्व चेयरमैन जितेंद्र नारायण त्यागी (पहले वसीम रिजवी) अब जल्द ही निरंजनी अखाड़े के संत बनेंगे। इसके लिए उन्होंने अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष व मां मनसा देवी मंदिर के अध्यक्ष श्रीमहंत रविंद्रपुरी, शांभवी पीठाधीश्वर व शंकराचार्य परिषद के अध्यक्ष स्वामी आनंद आनंद स्वरूप भेंट की। हरिद्वार में हुई धर्म संसद में भी जितेंद्र नारायण चर्चाओं में आए थे।

जितेंद्र नारायण सिंह त्यागी ने शांभवी पीठाधीश्वर स्वामी आनंद स्वरूप व जूना अखाड़े के महामंडलेश्वर स्वामी यति नरसिंहानंद के समक्ष धर्मसंसद में अमर्यादित भाषणों के मामले में जेल भेजे जाने से पहले संन्यास लेने की इच्छा जताई थी। इसके चलते वह मंगलवार को हरिद्वार पहुंचे और स्वामी आनंद स्वरूप के साथ निरंजनी अखाड़े में पहुंचकर अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष श्रीमहंत रविंद्रपुरी से मुलाकात की।

इस मुलाकात में किस तरह जितेंद्र नारायण त्यागी को संन्यास दिलाया जा सकता है, इस पर सलाह करते हुए आगे की रणनीति बनाई। श्रीमहंत रविंद्रपुरी ने कहा कि जितेंद्र नारायण त्यागी ने अब हिंदू धर्म धारण कर लिया है, इसलिए वह संन्यास धारण कर सकते हैं। जिसके लिए सभी अखाड़ों से वार्ता की जाएगी और जल्द ही उन्हें संन्यास दिलाया जाएगा।
वहीं जितेंद्र नारायण त्यागी निरंजनी अखाड़े के संत बन सकते हैं या नहीं इस सवाल पर बोलते हुए महंत रविंद्रपुरी ने कहा कि जब कोई हिंदू धर्म धारण कर लेता है तो वह संत भी बन सकता है और हमें ऐसे व्यक्तियों की अति आवश्यकता है, जो समाज के लिए कार्य करना चाहते हैं। जब कोई संत परंपरा में आ जाता है तो वह किसी मजहब का नहीं कहलाता, वह सभी धर्मों के लिए कार्य करता है और सभी धर्मों का भला चाहता है
वहीं शांभवी धाम पीठाधीश्वरस्वामी आनंद स्वरूप ने कहा कि जब हम जितेंद्र नारायण त्यागी से जेल में मिलने गए थे तब उन्होंने संन्यास लेने की इच्छा जताई थी और अब भी वह संन्यास लेना चाहते हैं, जिसके लिए अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष श्रीमहंत रविंद्रपुरी से भेंट की है। उन्होंने बताया कि संन्यास की भी एक परंपरा होती है, जिसमें सभी वरिष्ठ संतो की सहमति अति आवश्यक होती है।

By Tarun

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