जिन राज्यों में हिंदू आबादी कम है, वहां उन्हें अल्पसंख्यक घोषित किए जाने की मांग हो रही है। केंद्र सरकार ने एक याचिका के जवाब में सुप्रीम कोर्ट में कहा कि राज्य चाहें तो ऐसा कर सकते हैं। वहीं, दूसरी ओर असम के मुख्यमंत्री जिलों के आधार पर अल्पसंख्यक दर्जा देने की बात कर रहे हैं।

आखिर अल्पसंख्यक का दर्जा दिया कैसे जाता है? संविधान में किन लोगों को अल्पसंख्यक माना गया है? क्या राज्य और जिले के आधार पर अल्पसंख्यक घोषित हो सकते हैं? अल्पसंख्यक का दर्जा मिलने से क्या फायदा होता है? जिस याचिका की वजह से ये सारी बहस हो रही है उसमें क्या कहा गया है? कौन से राज्यों में हिंदू आबादी अल्पसंख्यक है? इन सभी सवालों का जवाब समझने के लिए हमने इस मामले में याचिका लगाने वाले वरिष्ठ वकील अश्विनी उपाध्याय से बात की। आइए इन सभी सवालों का जवाब जानते हैं…अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय

याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय कहते हैं कि उनकी याचिका की मूल मांग ये है कि 1992 का राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम और 2004 का अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान अधिनियम समाप्त किया जाए। अगर ये नहीं हो सकता तो जिन राज्यों में हिन्दू आबादी अल्पसंख्यक है, वहां उन्हें भी अल्पसंख्यक का दर्जा दिया जाए। याचिका अल्पसंख्यकों को परिभाषित करने के लिए गाइडलाइन बनाने की भी मांग करती है।

उपाध्याय कहते हैं कि भाषाई और धार्मिक अल्पसंख्यक की व्याख्या संविधान में कहीं नहीं की गई है। अल्पसंख्यक कौन है पहले ये तय करना होगा। उपाध्याय सवाल उठाते हैं कि विश्व में 6000 से ज्यादा भाषाएं बोली जाती हैं तो क्या भारत सरकार 6000 भाषाई अल्पसंख्यक घोषित कर सकती है? इसी प्रकार विश्व में 1000 से ज्यादा मत, पंथ और संप्रदाय हैं तो क्या भारत सरकार विश्व के सभी संप्रदायों को धार्मिक अल्पसंख्यक का दर्जा दे सकती है? उपाध्याय कहते हैं कि ऐसा

राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम, 1992 के सेक्शन 2(सी) में पांच संप्रदायों को अल्पसंख्यक बताया गया है। इन संप्रदायों में मुस्लिम, सिख, बौद्ध, पारसी और इसाई शामिल थे। केंद्र सरकार द्वारा ये नोटिफिकेश 1993 में जारी किया गया था। 2014 में लोकसभा चुनाव से ठीक पहले जैन समुदाय को भी अल्पसंख्यक घोषित कर दिया गया।

2013 में केंद्र सरकार ने ये कहा था भारत के संविधान में अल्पसंख्यक शब्द की व्याख्या नहीं की गई है। हालांकि, कुछ अनुच्छेद में इसका जिक्र जरूर है। जैसे अनुच्छेद 29 में अल्पसंख्यकाें के हितों को सुरक्षित रखने की बात कही गई है। इसमें नागरिकों को किसी विशेष भाषा, लिपि और संस्कृति को बनाए रखने का अधिकार है। हालांकि, सुपीम कोर्ट ने इसकी व्याख्या करते हुए कहा है कि इसमें अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक दोनों शामिल हैं।

अनुच्छेद 30(1) भाषाई और धार्मिक अल्पसंख्यकों को शिक्षण संस्थान का निर्माण करने और उसे संचालित करने का अधिकार देता है और संविधान का अनुच्छेद 30(2) कहता है कि केंद्र और राज्य सरकार शिक्षण संस्थानों को मदद देते समय भाषाई और धार्मिक अल्पसंख्यकों द्वारा बनाए गए शिक्षण संस्थान के साथ कोई भेदभाव नहीं करेगी। हालांकि, सरकार का कहना है कि नौकरी और प्रवेश में अल्पसंख्यकों को किसी तरह का लाभ नहीं मिलेगा।

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