पाकिस्तान की पारंपरिक रामलीला भारत में! चौंकिए मत, यह बिल्कुल सही है। यह रामलीला बैतूल में होती है। ऐसी अनूठी रामलीला कराने वाले लोग सिंधी समाज के हैं, जो आजादी के बाद पाकिस्तान से यहां आए थे। दशहरा पर होने वाली इस रामलीला में सबसे दिलचस्प है कवच की कहानी। यह कवच भगवान राम बनने वाला बालक पहनता है। मंचन के बाद कवच पर लगे हुए बाल से ढेरों ताबीज तैयार होते हैं। इन्हें मन्नत स्वरूप यहां आने वाले लोगों को बांट दिया जाता है।

जब भी उनकी मन्नत पूरी होती है तो उन्हें यहां आकर भंडारा करना होता है, लेकिन इसके लिए भी नंबर लगता है। कई लोगों को मन्नत पूरी होने के बाद यहां भंडारा करने के लिए 10-10 साल का इंतजार करना पड़ रहा है, हालांकि जरूरी नहीं है कि लोग भंडारा ही करें। वे अपनी क्षमता अनुसार चढ़ावा भी चढ़ा देते हैं।

सिंधी-पंजाबी समुदाय यहां 64 साल से रामलीला करवाता है
पाकिस्तान से 1957 में बैतूल आया सिंधी-पंजाबी समुदाय यहां 64 साल से रामलीला करवाता है। आजादी के पहले वे पाकिस्तान में रामलीला करवाते थे। रामलीला में परम्परा है कि भगवान राम बनने वाला कलाकार एक खास तरह का कवच धारण करता है। 100 साल पुराने इस कवच में बाल लगे होते हैं।

पंजाबी सेवा समिति के दीपू सलूजा के मुताबिक मन्नत के इस प्रसंग में अब तक हजारों श्रद्धालु लाभ पा चुके हैं। यह पूछे जाने पर कि कवच में कभी बाल खत्म नहीं होता? उनका कहना है कि यही कवच की खासियत है। हर साल रामलीला के दौरान कवच के बाल निकालकर ताबीज बनाकर लोगों में बांटा जाता है, लेकिन आज तक कवच के बाल पहले की ही तरह हैं।

उर्दू और हिंदी में दर्ज मंगतों के नामखास बात यह है कि कवच के ताबीज का पूरा लेखा-जोखा रखा जाता है। आयोजकों के पास एक डायरी है, जिसमें पिछले 100 साल में जिसने भी मन्नत मांगी, उनका नाम लिखा है। मन्नत पूरी होने के बाद उनका नाम डायरी से हटा दिया जाता है।

उर्दू और हिंदी में दर्ज मंगतों के नाम आज भी इस डायरी में दर्ज हैं। यह लेखा-जोखा रखने वाले हरिओम बत्रा की मानें तो एक समय ढाई-ढाई रुपए की मन्नत चढ़ती थी। अब तो लोग यहां लंगर का आयोजन करवाते हैं।

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