मध्यप्रदेश के इंदौर के परदेशीपुरा में दशानन का मंदिर भी है। यहां सुबह-शाम आरती कर शंख और मंजीरे भी बजाए जाते हैं। रावण महाराज के जयकारे लगाए जाते हैं। यह मंदिर बनवाया है गौहर परिवार ने। रावण के और उसके परिवार के सदस्यों के नाम पर भी अपने बच्चों के नाम रख लिए हैं। गौहर परिवार ने अपने पोते का नाम लंकेश रखा है। छोटी पोती का नाम चंद्रखा (शूर्पणखा) है। इस मंदिर में अब लोग आकर पैरों में धागा बांधकर मन्नत भी मांगते है। वहीं छात्र-छात्राएं परीक्षा से पहले रावण से आशीर्वाद लेकर जाते हैं। अच्छे नंबरों से पास होने के बाद यहां पर प्रसाद चढ़ाते हैं।

10 -10 -10 को हुई थी मंदिर की स्थापना

मंदिर को बनवाने वालो महेश गौहर बताते हैं कि 10 अक्टूबर 2010 को मंदिर की स्थापना की थी। खास बात है मंदिर की आधारशिला 10 बजकर 10 मिनट और 10 सेकेंड पर रखी गई थी। इस दौरान कई लोग उन पर हंसे थे। मोहल्ले वालों का भी कहना था कि भगवान का मंदिर होता है रावण का कैसा मंदिर। धीरे-धीरे जब लोगों का मंदिर पर विश्वास बढ़ता गया, तो अब यहां आकर मन्नत के धागे बांधते हैं। बच्चे रोजाना आरती में शामिल होते हैं।

रावण नाम नहीं एक उपाधि है
महेश गौहर का कहना था कि रावण एक उपाधि है। रावण का नाम दशगिरिव व दशानन था। रावण की शादी जो कि वर्तमान में मंदसौर कहा जाता है, दशपुर में रहने वाली मंदोदरी से हुई थी। रावण के पिता बड़े विद्वान थे। उन्होंने कुंडली देखकर रावण को कहा था कि तेरी पहली संतान ही तेरी मौत का कारण बनेगी। जिस पर रावण ने अहंकार दिखाते हुए कहा था कि नौ ग्रह मेरे बस में हैं। काल मेरे पैरों में रहता है। मेरा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। मान्यता है कि मंदोदरी द्वारा उसके पहली बच्ची को जमीन में दफना दिया गया था, जिसके बाद वही आगे चल कर सीता जी के रूप में प्रकट हुई।

रावण ने ब्राह्मण होने के बाद भी मर्यादा का उल्लंघन नहीं किया। अनेक बार तो ये सुना जाता है कि भाई हो तो रावण जैसा! जिसने बहन के अपमान का बदला लेने जैसा कठिन कार्य करने के साथ ही राम के साथ युध्द किया। सीता माता का न तो किसी तरह का अहित किया और न किसी और को करने दिया। महाप्रतापी राजा दशानन ने अपने मोक्ष के लिए ही प्रभु राम के हाथों मृत्यु व मोक्ष पाने के लिए ही ये मार्ग अपनाया।

पोती ने कहा- परीक्षा से पहले लंकेश का आशीर्वाद लेकर जाते हैं
महेश गौहर की पोती भूमिका गौहर का कहना था कि वह अभी 9वीं में पढ़ाई कर रही है। 8वीं कक्षा और इससे पहले सभी कक्षाओं में जिस विषय में दिक्कत आती थी। वह जाकर लंकेश का आशीर्वाद लेकर और फिर परीक्षा देने जाती थी। उसी विषय में अच्छे नंबर आते थे।

पोता लंकेश 8वीं कक्षा में है। अब 12 साल का है। उसे भी अपने नाम को लेकर कभी भी दादा से शिकायत नहीं रही। उसका सोचना है कि लाखों लोगों में किसी का नाम लंकेश होता है। वह किस्मत वाला है कि उसका नाम कुछ इस तरह का है कि आज भी पूरी दुनिया उसका नाम लेती है। महेश की सबसे छोटी पोती जिसका नाम चन्द्रखा या उसे शूर्पणखा भी कहा जाता है, अभी 14 साल की है।

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