97 साल पुराने वक्फ डीड के आधार पर श्रीरामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट को घेरने की तैयारी कर रहे लोगों को झटका लगा है। रजिस्ट्री के एक माह बाद हरीश पाठक और कुसुम पाठक के पक्ष में हुए नामांतरण में सभी आरोप खारिज कर दिए गए। वक्फ डीड के परीक्षण का हवाला देते हुए तहसीलदार ने लिखा है कि जिन पुराने नंबरों से नए नंबर का दावा किया जा रहा है, वह गलत है। वक्फ की जमीन के पुराने गाटा संख्या 271, 272, 273, 274, 275, 276 व 277 का कोई भी क्षेत्रफल नई गाटा संख्याओं 242, 243, 244, 246 में शामिल नहीं है। बल्कि इसका गाटा संख्या 256, 257, 258, 259, 260 और 262 है।
13 मई 1924 को फकीर मोहम्मद पुत्र निरहू व उनकी पत्नी बख्तावर बीबी निवासी बरवारी टोला अयोध्या की कोई औलाद नहीं होने से उन्होंने अपनी समस्त भूमि अल्लाहताला के नाम वक्फ को देने का आवेदन किया। तब पूरी मिल्कियत की मालियत 12 हजार थी, जो दफा-30 के तहत 20 मई 1924 को रजिस्टर्ड हो गया। इसके साथ संपत्ति को बेचना, खरीदना, गिरवी रखना अवैध हो गया। रजिस्टर्ड वक्फनामा में भूमि बंदोबस्त के पहले के नंबर गाटा संख्या 271, 272, 275, 276, 274, 273 व 277 से मौजा बाग बिजैसी दर्ज था, इसे लेकर दावे किए गए कि भूमि बंदोबस्त के बाद बदलकर उक्त गाटा संख्या 242/1,242/2, 243, 244 व 246 हो गया।
वक्फ कर्ता बख्तावर बीबी व फकीर मोहम्मद के नाम फसली 1344 में खाता संख्या 3 में अंकित गाटे 242, 243, 244 व 246 मौजा बाग बिजैसी अंकित है। खतौनी उर्दू में है। इससे बने नए गाटे पूरी तरह स्पष्ट हैं। गाटा संख्या 274 व 276 से नया गाटा 242 बना है। जबकि गाटा संख्या 272 से गाटा संख्या 243 और गाटा संख्या 273 व 275 से नया गाटा संख्या 244 बना है। जबकि गाटा संख्या 277 व 270 से नया गाटा संख्या 246 बना है। बोर्ड में पंजीकृत दस्तावेज में व्यवस्था दी गई है कि खानदान का एक सदस्य इसका मुतवल्ली होता रहेगा। जबकि कुछ लोग सदस्य चुने जाएंगे। वक्फ की प्रॉपर्टी समाज के लिए प्रयोग की जाएगी व्यक्तिगत नहीं। मुतवल्ली के नाम प्रॉपर्टी की वरासत दर्ज होती रहेगी। पहली कमेटी हिंदू-मुस्लिम एकता की परिचायक थी, इसमें सैयद अब्दुल, बाबू केशव प्रसाद और जगन्नाथ सिंह शामिल थे।
ऐसे बदलती रही वक्फ बोर्ड की व्यवस्था
1955 : हाजी फकीर मोहम्मद के इंतकाल के बाद खानदान के लोगों ने मो. रमजान को मुतवल्ली चुना। इनके नाम यह संपत्ति राजस्व अभिलेखों में उनके इंतकाल 1955 तक रही।
1982 : मो. फायक के नाम यह संपत्ति दर्ज हुई, जो इसके मुतवल्ली थे।
1986-1994 : मो. फायक के बाद मो. आलम मुतवल्ली चुने गए और उनके नाम यह संपत्ति दर्ज थी।
1996-2015 – मो. आलम के इंतकाल के बाद मो. असलम मुतवल्ली बने। कमेटी में मकबूल अहमद, अलाउद्दीन, मो. युनुस, मो. अयूब, शकील अहमद, मो. याकूब समेत सात लोग थे।
यहां से शुरू हुई गड़बड़ी
तत्कालीन मुतवल्ली मो. असलम ने तहसीलदार के यहां पूर्ववर्ती मुतवल्ली मो. आलम का नाम खारिज करके अपना नाम दर्ज कराने का आवेदन किया। तब पता चला कि मो. आलम के चारों पुत्र महफूज आलम, जावेद आलम, नूर आलम और फिरोज आलम ने 15 अक्तूबर 1997 को वक्फ की संपत्ति की पैतृक संपत्ति के रूप में वरासत दर्ज करा ली है। इसके विरोध में मो. असलम ने वर्ष 2009 में तहसीलदार कोर्ट में वाद संख्या 1053 असलम बनाम महफूज आलम दाखिल किया था।
तत्कालीन तहसीलदार ने खानदान के लोगो की वंशावली बनवाई और मौके पर निरीक्षण भी किया। कानूनगो ने रिपोर्ट में कहा कि अगर इस संपत्ति पर मुतवल्ली मो. आलम के पुत्रों का नाम दर्ज होता है तो उस खानदान में और भी लोग हैं जिनका नाम दर्ज होना चाहिए। इस रिपोर्ट के आधार पर तहसीलदार ने 29 जून 2009 को महमूद आलम के पुत्रों के नाम खतौनी में दर्ज होने के आदेश को स्थगित कर दिया।
2011 से शुरू हुआ विवादित भूमि की खरीद फरोख्त का धंधा
श्रीरामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट जिस खरीद फरोख्त की सफाई में वर्ष 2011 के एग्रीमेंट का हवाला दे रहा है, वह भी विवादित था। कोर्ट से स्टे के बावजूद पूर्व मुतवल्ली मो. आलम के चारों पुत्रों महफूज आलम, जावेद आलम, नूर आलम और फिरोज आलम ने हरीश पाठक उर्फ हरिदास और उनकी पत्नी कुसुम पाठक समेत मो. इरफान (सुल्तान अंसारी का पिता) के नाम गाटा संख्या 242/1, 242/2, 243, 244, 246 कुल रकबा 2.3340 हेक्टेयर का एक करोड़ रुपये में तीन साल के लिए एग्रीमेंट कर दिया।
इसी बीच तहसीलदार कोर्ट का स्थगन आदेश एक सितंबर 2017 को रद्द हो गया। इस ऑर्डर के खिलाफ पूर्व मुतवल्ली मो. असलम के भाई मो. नईम ने अपर आयुक्त की कोर्ट में निगरानी दाखिल की। जिस पर अपर आयुक्त ने एक सितंबर 2017 को मालिक बनाने वाले आदेश पर स्टे कर दिया और खरीद फरोख्त पर रोक लगा दी।
स्टे के बावजूद 15 नवंबर 2017 को यह भूखंड मो. आलम के चारों पुत्रों ने दो करोड़ रुपये में हरीश पाठक और उसकी पत्नी कुसुम पाठक को बेच दिया, लेकिन 2011 के एग्रीमेंट में रहे इरफान अंसारी का नाम रजिस्ट्री में शामिल नहीं था। इस बैनामे को भी मो. नईम और परिवार के वहीद अहमद ने खारिज दाखिल रद्द करने के लिए तहसीलदार कोर्ट में अपील की। इसी बीच हरीश पाठक अपनी जमीन को बाहुबलियों व भूमाफिया को बेचने के लिए हाथ पैर मारता रहा। उसने बसपा नेता जितेंद्र सिंह बबलू के परिवार को पूरी भूमि 2.16 करोड़ में एग्रीमेंट किया, लेकिन वह कब्जा नहीं पा सके। फिर यह भूमि पाठक दंपती के पास आ गई।
वर्ष 2019 में इस भूमि का एक हिस्सा 12080 वर्गमीटर नौ लोगों को दो करोड़ में एग्रीमेंट हुआ। यही भूमि 18 मार्च 2021 को एग्रीमेंट रद्द कराकर एग्रीमेंट में शामिल एक व्यक्ति सुल्तान अंसारी और एग्रीमेंट से बाहर के व्यक्ति रवि मोहन तिवारी को दो करोड़ में बेच दी गई। रवि मोहन यहां के महापौर ऋषिकेश उपाध्याय के रिश्ते में आते हैं। इस पूरी प्रक्रिया में महापौर के साथ एक ट्रस्टी डॉ. अनिल मिश्रा गवाह के रूप में शामिल हैं। बाद में यह भूमि 18.50 करोड़ में श्रीरामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट को महासचिव चंपत राय से 17 करोड़ का आरटीजीएस से लेकर कब्जा सहित रजिस्टर्ड एग्रीमेंट हो जाता है। यहीं से सवाल उठना शुरू हुआ कि दो करोड़ की संपत्ति को उसी दिन दस मिनट में कैसे 18.50 करोड़ में खरीदा गया। खरीद फरोख्त में लगाया गया सारा पैसा रामभक्तों के दान का था। लिहाजा सियासत गरमा गई।
सुन्नी वक्फ बोर्ड ने ही वक्फ संपत्ति से कर दिया था इनकार
97 साल पहले वक्फ संपत्ति की पूरी लड़ाई तब हवाई हो गई जब वहीद अहमद ने उप्र. सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड लखनऊ में आपत्ति प्रस्तुत की। इसकी सुनवाई में असिस्टेंट सेक्रेटरी ने वक्फ संपत्ति मानने से इनकार कर दिया। इसी आदेश को नायब तहसीलदार के यहां खारिज दाखिल के मुकदमे में पेश करने के बाद पाठक दंपती को अपना नामांतरण आदेश पाना आसान हुआ।
वक्फ बोर्ड की संपत्ति हासिल करने के लिए जाएंगे कोर्ट
वक्फ बोर्ड में शामिल परिवारों से जुड़े वहीद अहमद कहते हैं कि 20 मई 1924 को उनके पुरखे वख्तावर बीबी व फकीर मोहम्मद ने अपनी संपत्ति समाज के लिए वक्फ को दी थी। इसी भूमि को श्रीरामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट विवादित लोगों से खरीदकर क्या दिखाना चाहता है। हरीश पाठक और कुसुम पाठक को रजिस्ट्री करने वाले महफूज आलम, जावेद आलम, नूरआलम और फिरोज आलम के खिलाफ 28 मई 2018 को रामजन्मभूमि थाने में कूटरचना की रिपोर्ट दर्ज कराई गई थी।
ट्रस्ट सम्मानित संस्था है, भगवान राम के आदर्शों को फलीभूत करने की जिम्मेदारी है, ऐसे में उसे जमीन खरीदने से पहले इस भूखंड पर तहसील और कमिश्नरी से लेकर हाईकोर्ट तक चले मुकदमे का संज्ञान लेना चाहिए था। अब उनके पास ट्रस्ट से जमीन लेकर वक्फ में दर्ज कराने के लिए कोर्ट जाना ही अंतिम विकल्प है। इसके पहले वे डीएम समेत रजिस्ट्रार को प्रत्यावेदन देगें। इसी परिवार के अब्दुल वाहिद कहते हैं कि समाज के लिए छोड़ी गई जमीन को भूमाफिया के जरिए करोड़ों खर्च करके खरीदना ट्रस्ट का अच्छा काम नहीं है।