गा दशहरा से पहले कटान और जलस्तर बढ़ने से रेत में दबी लाशों से जल प्रदूषण का खतरा बढ़ गया है। इस बार गंगा दशहरा 20 जून को है। मान्यता है कि दशहरा पर गंगा में डुबकी लगाने से 10 तरह के पाप धुल जाते हैं, लेकिन कोरोना काल में गंगा के तटों पर दफनाए गए सैकड़ों शव अब प्रदूषण का कारण बन गए हैं। महीनें पुराने शवों से जहां दुर्गंध उठ रही है, वहीं उनसे संक्रमण का भी डर बना हुआ है। फिलहाल हर रोज निकले रहे ऐसे शवों को गंगा से छानकर अंतिम संस्कार कराया जा रहा है,ताकि उन्हें बहने से रोका जा सके।
कोरोना काल में गंगा किनारे बड़ी संख्या में दफनाए गए शवों से बारिश के मौसम में प्रदूषण का खतरा बढ़ने का अंदेशा है। बीते अप्रैल-मई महीने में कोरोना संक्रमित शवों के अंतिम संस्कार की पर्याप्त व्यवस्था न होने से फाफामऊ, छतनाग घाटों पर सैकड़ों शवों को रेत में दफना दिया गया था। कोराना संक्रमण की दूसरी लहर ठंडी पड़ गई है, लेकिन फाफामऊ घाट पर रेत से शवों के मिलने का सिलसिला जारी है। कहा जा रहा है कि यह सभी शव कोरोना संक्रमितों के हैं, जिन्हें जलाने की बजाए रेत में ही दबा दिया गया था।