इस बार राज्य में पिछले 10 सालों की तुलना में सबसे कम वनाग्नि की घटनाएं हुईं। फायर सीजन में रुक रुक कर हुई बारिश ने जंगलों में नमी भर दी। जंगलों के कम जलने के कारण वन विभाग के करोड़ों रुपये बचे।
देहरादून
फायर सीजन में इस बार रुक-रुक कर बारिश होने की वजह से उत्तराखंड में वनाग्नि की घटनाएं पिछले 10 वर्षों की तुलना में कम हुई हैं। जंगलों के कम जलने के कारण न सिर्फ वन्य जीव बल्कि वन महकमे के अफसरों और ग्रामीणों की मुश्किलों को भी कम किया है। वन विभाग की ओर से हर साल 15 फरवरी से 15 जून की अवधि को फायर सीजन घोषित किया जाता है।
फायर सीजन से पहले जंगलों की आग को रोकने के लिए वन करोड़ों रुपये का बजट भी खर्च करता है। इस बजट के तहत फायर लाइन, कंट्रोल फायर, फायर वाचर रखने आदि साजो सामान पर रकम खर्च होती है। लेकिन इस बार सर्दियों से गर्मियों का मौसम आने तक हर महीने रुक-रुक कर बारिश होती रही। जिस समय से गर्मी की शुरुआत मानी जाती है और जंगलों में आग लगने की घटनाएं शुरू हो जाती हैं उस समय भी बारिश होने का सिलसिला जारी रहा। इस सीजन में अभी तक जंगलों में आग की मात्र 126 घटनाएं हुई हैं, जिनमे लगभग 156 हेक्टेयर जंगल प्रभावित हुआ है। ये आंकड़ा पिछले 10 सालों की तुलना में सबसे कम है।
मौसम विभाग के पूर्वानुमान के अनुसार 20 जून के बाद कभी भी उत्तराखंड में मानसून प्रवेश कर सकता है। मानसून सीजन शुरू होने के बाद जंगलों में आग लगने की संभावनाएं कम हो जाती हैं। सरकार हर साल वनाग्नि की घटना से निपटने के लिए वन विभाग को करोड़ों का बजट देती है। इस बार वनों में आग की घटनाएं कम रहने के कारण वन विभाग को ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ी और फायर लाइन, कंट्रोल बर्निंग, फायर वाचर रखने जैसे कामों पर आने वाला ख़र्च भी बचा। साथ ही करोडों की वन संपदा भी राख होने से बच गई।
उत्तराखंड के मुख्य वन संरक्षक डॉ पराग मधुकर धकाते ने बताया कि फायर सीजन में रुक रुक कर हुई बारिश ने जंगलों में नमी पैदा कर दी है। इससे जंगलों में आग की घटनाओं में काफ़ी कमी आई है। वह, वन्यजीव और स्थानीय लोगों के लिए ये अच्छा संकेत है।
जंगलों में आग की घटनाओं का वर्षवार स्थिति
वर्ष – जंगल जले (हेक्टेयर में)
2020 155.89 (13 जून)
2019 1654
2018 4480.04
2017 1244.64
2016 4437.75
2015 701.61
2014 930.33
2013 384.05
2012 2823.09
2011 231.75
2010 1610.82