यह एक अहम् सवाल है. देश का यक्ष प्रश्न है. संत सिर्फ धर्म रक्षा करेंगे, या धर्म के मूल में समाज को दुखी करने वाले कारणों को तलाश कर, उसे दूर करने के लिए कार्य करेंगे. प्राचीन काल में ऋषि-मुनी जन-कल्याण के लिए राजा-महाराजाओं से लड़ने के लिए तैयार रहते थे. रामायण-काल में भी ऋषियों के आग्रह पर राम-लक्ष्मण को राक्षसों के अत्याचार के लिए राजमहल से निकल कर जंगलों में जाना पड़ा था. राजा दशरथ अपने प्रिय पुत्रों को जन-हित में ऋषियों के साथ खुशी मन या दुखी मन से विदा किये थे. यह स्पष्ट है कि संत, सन्यासी, ऋषि-मुनी, जन कल्याण के लिए राजाओं को नियंत्रित करते थे. वर्तमान समय में संत समाज जनता से कट कर है. अब सत्ताधारी ही संतों को नियंत्रित कर रहे हैं. हालाकि जनता के बल पर ही इनकी तमाम जरूरते पूरा हो रही है. देश का तंत्र भी कुछ इस तरह से है कि किसी भी संत को जन कल्याण की बाते करने पर उनका मजाक उड़ाया जाता है. अभी वर्तमान में बाबा राम देव ने काले धन पर आवाज उठाई है, लेकिन तमाम राजनीतिज्ञ उनकी आलोचना इस लिए कर रहे हैं कि बाबा को राज-नीति से क्या मतलब है. क्या जनता के सुख-दुःख की बाते सोचना राजनीती है? लगता है की राजनीती का मतलब आज के सन्दर्भ में भ्रष्टाचारी होना है? काले धन के बल पर चुनाव जितना है?
. . आज के सन्दर्भ में यह जरुरी हो गया है कि भ्रष्ट तत्वों के खिलाफ आम जनता के साथ संत समाज खुल कर सामने आये. प्राचीन भारत के गौरव को प्राप्त करने में संत-समाज की भूमिका आवश्यक हैं. वैसे संतों को कोई जरुरत नहीं की राजनीती में अपना समय बर्बाद करें, पर राजनीतिज्ञ जब जनता के सुख-दुःख से विमुख हो कर सिर्फ अपने लिए सोचने लगते हैं, जनता के लिए अपने दायित्वों को भूल जाते हैं, ऐसे में आवश्यक हो जाता है की संत समाज धर्म के मूल में छुपे समाज कल्याण, जन-कल्याण के लिए आगे आयें और निरंकुश, भ्रष्टाचारियों को उखाड़ फेकने वाले शंख नाद से समाज का कल्याण करें. धर्म के नाम पर जनता तुरंत गोलबंद हो जाती है. अभी भी लोग भूख से मर रहे हैं और उन्हें लगता है कि पूर्व जन्म में किये गए किसी पाप के कारण इस जन्म में कष्ट हो रहा है. गरीब लोग चुप-चाप समाज बिरोधियों के गलत नीतियों के शिकार हो रहे हैं. बिना उफ किये अपनी गाढ़ी कमाई से बंचित हो जा रहे हैं. चुकि धर्म की ऐसी घुटी पिला दी गई है कि अभी का मेहनत और सुकर्म अगले जन्म में तुम्हे सुख दिलाएगा, अभी तुम मेहनत करो और मरो, अभी तुम्हारे बच्चे कष्ट झेलेंगे, शिक्षा से बंचित रहेंगे, दूध के लिए तरसेंगे, लेकिन तुम भगवन पर भरोषा करो.
. . इन विकट परिस्थितियों में धर्म का उचित पाठ पढ़ा कर जनता को जगाने का दायित्व संत समाज का है. अगर कही स्वर्ग और नरक है तो संतों को स्वर्ग प्राप्ति के लिए समाज की रक्षा करनी पड़ेगी. दुखी लोगों के बीच में रहने वाला संत अगर दुखियों के दुःख को दूर करने के दिशा में अगर एक कदम भी आगे नहीं बढ़ते हैं तो उन्हें निश्चित ही नरक की प्राप्ति होगी. ऐसे में संत समाज गरीबों का मार्ग दर्शन कर उन्हें समझाए कि शोषण के खिलाफ लड़ो,काले धन को वापस लेन के लिए आन्दोलन करो.निश्चित ही संत समाज यश के भागी बनेगें.

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