नागा साधु बनने के लिए महिलाओं करना पड़ता है अपना पिंडदान, बिताती हैं ऐसा रहस्यमयी जीवन

नई दिल्ली: 15 जनवरी से प्रयागराज में कुंभ के महापर्व शुरू हो रहा है। कुंभ हिन्दू धर्म के अनुयायियों की आस्था से जुड़ा पर्व है। कुंभ मेले में स्नान करने के लिए पूरे देश से श्रद्धालु आते हैं। कुंभ मेले में नागा साधु सबके आकर्षण का क्रेंद होते हैं। बता दें, नागा साधुओं की दुनिया बहुत रहस्यमयी होती है। खासतौर से महिला नागा साधुओं की। आज हम आपको महिला नागा साधुओं से जुड़ी हुई कुछ रोचक जानकारी आपको बताने जा रहे हैं।

12 साल तक कठिन बृह्मचर्य

नागा साधु बनने से पहले महिलाओं को पहले 6 से 12 साल तक कठिन बृह्मचर्य का पालन करना होता है। इसके बाद अगर गुरू को लगे की यह दीक्षा के लायक है तो उसे ही दीक्षा दी जाती है। इस समुदाय के संत किसी भी महिला को अपने साथ रखने से पहले उसके परिवार की जानकारी करते है।

अपना पिंडदान करती हैं महिलाएं

नागा साधु बनने से पहले महिला को खुद का पिंडदान करना पड़ता है। जैसे हम लोग किसी की मृत्यु के बाद करते है। इसमें बस एक ही बार महिला की मर्जी चलती है वह ये कि वह कौन से मठ से शिक्षा लेना चाहती है। इसके बाद उसके आचार्य ही सबकुछ तय करते हैं।

मुंडन के बाद नदी में होता स्नान

नागा साधु बनने से पहले महिला का मुंडन करवाया जाता है और उसे नदी में स्नान कराया जाता है। इसके बाद उनको उनकी दिनचर्या के बारे मे सिखाया जाता है, जहां उनको ब्रह्म मुहर्त मे उठना पड़ता है और पूरे दिन भगवान शिव का जाप करना पड़ता है। दोपहर में भोजन कराया जाता है। कुछ देर आराम के बाद फिर से जाप शुरू कर दिए जाते है। शाम को दत्रातय भगवान की पूजा की जाती है और उसके बाद शयन। नदी मे स्नान करते समय नागा साध्वी अन्य संतों के साथ ही स्नान करती है, जबकि उन्हें मठ में पूर्ण सम्मान दिया जाता है।

साधु बनने के बाद ‘माता’ कहकर बुलाते हैं संत

जब कोई महिला नागा साधु बन जाती है तो सब संत उसे माता कहकर संबोधित करते है। वस्त्रों में नागा साध्वी सिर्फ भगवा रंग का चौला धारण करती है। साधु बनने से पहेल साध्वी को यह साबित करना होता है कि उसका समाज व परिवार से कोई संबंध नहीं है।

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