संस्कृति और परंपराओं के शहर बनारस ने अपनी थाती को संजो कर रखा है। यही कारण है कि सात वार में नौ त्योहार मनाए जाते हैं। विजयादशमी के दूसरे दिन काशी ही नहीं पूरा देश राम और भरत के मिलन का साक्षी बनता है। काशी में 482 वर्षों से अनवरत भरत मिलाप की परंपरा चली आ रही है।

historic Bharat Milap Dasharatha sons met in Kashi tears welled up people chanted Jai Shri Ram

वाराणसी के लक्खा मेले में शुमार ऐतिहासिक भरत मिलाप का आयोजन इस बार बारिश के बीच हुआ। चोरों भाईयों को मिलता देख हर किसी की आंखें नम हो गईं। 

परे भूमि नहिं उठत उठाए। बर करि कृपासिंधु उर लाए, स्यामल गात रोम भए ठाढ़े। नव राजीव नयन जल बाढ़े… अर्थात भरतजी पृथ्वी पर पड़े हैं, उठाए उठते नहीं। तब कृपासिंधु श्री रामजी ने उन्हें जबरदस्ती उठाकर हृदय से लगा लिया। (उनके) सांवले शरीर पर रोएं खड़े हो गए। नवीन कमल के समान नेत्रों में (प्रेमाश्रुओं के) जल की बाढ़ आ गई।रविवार की शाम को नाटी इमली के भरत मिलाप मैदान में त्रेतायुग उतर आया।

पांच मिनट की लीला में भक्तों ने अपने आराध्य के दर्शन किए। काशी में भारी बारिश के बीच चारों भाइयों के मिलन को देखकर हर किसी की आंखें सजल हो उठीं। श्री चित्रकूट रामलीला में भरत मिलाप लीला में रामायण काल में भगवान श्रीराम के अयोध्या पहुंचने और भरत से मिलने का दृश्य जीवंत हो उठा।

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