बंगाल की रानी ने काशी में अनेक कार्य करवाएं। इसमें अन्नपूर्णा मंदिर और दुर्गाकुंड प्रमुख हैं। किताब ‘द होली सिटी बनारस’ में इसके काफी उल्लेख किए गए हैं।

काशी आकर बंगाल की रानी भवानी ने काशी की अन्नपूर्णा मंदिर को संवारा और दुर्गाकुंड मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था। पंचक्रोसी मार्ग की रिपेयरिंग से लेकर त्रिपुरा घाट पर भी ब्रह्मपुरी बनवाई थी। जिसे बाद में काशी के ब्राह्मणों को दे दिया।
इसका उल्लेख 1912 में यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया की ओर से से प्रकाशित ‘द होली सिटी बनारस किताब’ में किया गया है। इसमें बताया गया है कि नवदुर्गा में से एक कूष्मांडा देवी के दर्शन के लिए देश के सबसे सिद्धपीठ में से एक काशी का दुर्गाकुंड मंदिर है। जिसका 1000 साल पहले 11वीं शताब्दी का इतिहास है। लेकिन वर्तमान भवन का निर्माण 270 वर्ष 1755 में पहले बंगाल के नटोर की विधवा रानी भवानी ने कराया। धर्मशालाएं बनवाईं।
यूरोपीय अधिकारी ने बनवाया द्वार और मजिस्ट्रेट ने लगवाया घंटा: रिसर्च के मुताबिक दुर्गाकुंड मंदिर और मुख्य द्वार दोनों की वास्तुकला अलग-अलग है। द्वार का निर्माण 100 साल बाद 1860 में एक यूरोपीय अधिकारी ने करवाया। प्रवेश द्वार तराशे गए 12 खंभों पर खड़ा है। इसके ऊपर एक गुंबद और शिखर है, जिसके अंदर एक बड़ा घंटा भी है। इसे मिर्जापुर के यूरोपीय मजिस्ट्रेट ने भेंट किया था।
प्राचीन काल में विश्वेश्वर महादेव और अन्नपूर्णा के बाद दुर्गाकुंड के दर्शन का सबसे ज्यादा महत्व था। पंचक्रोसी यात्रा भी मंदिर की ओर से ही गुजरती थी। इसके चलते महारानी भवानी ने मणिकर्णिका से लेकर पूरे यात्रा पथ तक सड़क का जीर्णोद्धार कराया था। उन्होंने ही अन्नपूर्णा मंदिर को बड़े स्तर पर संजाने और संवारने का काम किया था।