अनेक संस्कारों की तरह श्राद्ध कर्म के भी कुछ नियम हैं, जिनका पालन अत्यंत आवश्यक बताया गया है। पितृपक्ष के दौरान इन नियमों का पालन जरूरी है।

Pitru Paksha 2025 rules and shradh karne ke niyam in hindi

अनेक संस्कारों की तरह श्राद्ध कर्म के भी कुछ नियम हैं, जिनका पालन अत्यंत आवश्यक बताया गया है। पितृपक्ष के दौरान इन नियमों का पालन जरूरी है। श्राद्ध कर्म में शुद्धता, नियम और श्रद्धा का विशेष महत्व है। इनका पालन करने से पितृगण प्रसन्न होकर सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देकर अपने लोक चले जाते हैं। इसलिए श्राद्धकर्ता को कुछ नियमों का पालन अवश्य करना चाहिए।

पवित्रता और श्रद्धा का ध्यान
शास्त्र कहते हैं कि पितर श्राद्ध कर्म से ही संतृप्त होते हैं। वे अन्न और जल से ही प्रसन्न हो जाते हैं, लेकिन इस कार्य में पवित्रता और श्रद्धा का ध्यान रखना आवश्यक होता है।

भूलों के लिए क्षमा 
सूर्योदय के समय स्नान करके एक लोटा जल पीपल पर चढ़ाएं, एक दीपक श्रद्धांजलि करके प्रार्थनापूर्वक नमस्कार कर पितरों से अपनी भूलों के लिए क्षमा मांगें।

कैसा हो आसन
रेशमी, कंबल, ऊन, लकड़ी, तृण, पर्ण, कुश आदि के आसन श्रेष्ठ हैं। चिता पर बिछाए हुए, रास्ते में पड़े, पितृ-तर्पण एवं यज्ञ में उपयोग किए बिछौने, गंदगी और आसन में से निकाले हुए, पिडों के नीचे रखे तथा अपवित्र कुश निषिद्ध माने गए हैं। इसका आप विशेष रूप से ध्यान रखें।

योग्य ब्राह्मण
श्राद्ध में पतित, नास्तिक, मूर्ख, धूर्त, काले दांत वाले, गुरु द्वेषी, शुल्क से पढ़ाने वाले, जुआरी, अंध, कुश्ती सिखाने वाले आदि ब्राह्मणों का त्याग करना चाहिए। योग्य ब्राह्मणों को ही आमंत्रित करना चाहिए, तभी ब्राह्मण भोज का उचित फल प्राप्त होता है।

तिल और कुश का उपयोग
श्राद्ध कर्म में तिल और कुश का उपयोग अतिआवश्यक है। ऐसा माना जाता है कि तिल और कुश की उत्पत्ति भगवान विष्णु ने की है।

पिंड को समझें 
जौ या चावल के आटे को गूंथ कर एक गोलाकृति बनाई जाती है। इसी को पिंड कहते हैं, जिसे मृतक की आत्मा को अर्पित किया जाता है।

पिंड को समझें 
जौ या चावल के आटे को गूंथ कर एक गोलाकृति बनाई जाती है। इसी को पिंड कहते हैं, जिसे मृतक की आत्मा को अर्पित किया जाता है।

सात पीढ़ियों को मुक्ति 
मान्यता और विश्वास है कि गया में श्राद्ध पिंडदान करने से व्यक्ति की सात पीढ़ियों के पितरों को मुक्ति मिल जाती है।

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