श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर इन्दुलेखा ने बांके बिहारी जी की प्रतिमा को नंदबाबा मंदिर के गर्भगृह में विराजमान कराया। स्वयं घूंघट में नंदबाबा व यशोदा मैया के समक्ष पहुंचीं। उनका यह भावुक समर्पण श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण का केंद्र बना रहा।

मथुरा के नंदगांव में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के पर्व पर नंदबाबा मंदिर में इस बार एक अनोखा दृश्य देखने को मिला। हर वर्ष हजारों श्रद्धालु ठाकुरजी के जन्मोत्सव में शामिल होते हैं, लेकिन इस बार सबकी निगाहें एक महिला पर टिक गईं। यह थीं रोहतक (हरियाणा) के सुनारिया गांव की ज्योति, जिन्हें लोग अब इन्दुलेखा उर्फ मीराबाई के नाम से जानते हैं।
इन्दुलेखा ने बताया कि उन्होंने 15 फरवरी को ठाकुर बांकेबिहारीजी का वरण कर उनसे विवाह किया है। पेशे से वह नर्सिंग का कार्य करती थीं और उनका एक बच्चा भी है, लेकिन ब्रज की भूमि पर बार-बार आने के बाद उनके जीवन की दिशा बदल गई। आठवीं कक्षा में पहली बार ब्रज आईं तो यहां की रज और यमुना से ऐसा अनुराग हुआ कि साध्वी-सा जीवन अपनाने लगीं।
संतों और कथाओं के सत्संग में रम गईं और एक दिन भावावेश में ठाकुर बांकेबिहारी को अपना पति मानकर विवाह कर लिया। इस बार जन्माष्टमी का पर्व उनके लिए विशेष था, क्योंकि यह उनके पति का पहला जन्मोत्सव था। इन्दुलेखा ने बांके बिहारी जी की प्रतिमा को नंदबाबा मंदिर के गर्भगृह में विराजमान कराया और स्वयं घूंघट में नंदबाबा व यशोदा मैया के समक्ष पहुंचीं। उनका यह भावुक समर्पण श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण का केंद्र बना रहा।
इन्दुलेखा ने कहा कि यह आत्मा का मिलन है। प्रभु से जुड़ने के लिए ब्रजवासियों को गाली देने वाला कभी भी कृपा का अधिकारी नहीं बन सकता, लेकिन यहां की गालियां भी कष्ट दूर कर देती हैं। ब्रज, रज और यमुना को प्रणाम करना चाहिए। नंदगांव की जन्माष्टमी में यह अनोखा दृश्य भक्तिभाव और अद्भुत श्रद्धा का प्रतीक बन गया। भक्तों ने इसे आधुनिक युग की मीराबाई की झलक बताया।