हरिद्वार। जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी राजराजेश्वराश्रम महाराज ने कहा कि गुरु वह तत्व है जो कभी मरता नहीं है। स्वयं आद्य गुरु शंकराचार्य, रामानंदचार्य, माधवानंदचार्य ही नहीं जगद्गुरु श्रीकृष्णं वंदे जगद्गुरु भी सशरीर आए और शरीर त्यागकर गए। उन्होंने कहा कि गुरु शरीर नहीं है। जो शिष्य को ज्ञान देता है वह गुरु है। उन्होंने गुरु को सनातन सत्य बताया।
जगद्गुरु शंकराचार्य ने शिष्यों को सनातन संस्कृति और इसकी परंपराओं को संरक्षित करने के लिए प्रेरित किया। वर्तमान में स्त्री संस्कार के विमर्श पर उन्होंने कहा कि अगर कहीं सनातन की पौराणिक परंपराओं का दर्शन करना है तो जानकी और भगवान श्रीराम के विवाह के प्रसंग से प्रेरणा लिया जा सकता है। उन्होंने कहा कि स्त्री का कोई गुरु नहीं होता है, यदि वास्तव में उसका कोई गुरु है तो उसका पति है। पति के गुरु और उसके दीक्षा में मिले मंत्र को ही आत्मसात करना चाहिए।
जगद्गुरु ने कहा कि जो परमात्मा से साक्षात्कार कराता है वही असली गुरु है। बिना गुरु के परमात्मा तक पहुंचने का कोई साधन नहीं है। उन्होंने मानस में तुलसीदास की रचनाओं और कबीर व जायसी तक का वर्णन कर कहा कि सभी ने गुरु तत्व को पहचाना और पारब्रह्म परमेश्वर के शरणागत हुए।