जगद्गुरु भगवान आद्य शंकराचार्य की 1230वीं जयंती शंकराचार्य चौक, हरकी पैड़ी पर श्री विग्रह पूजन एवं सूरतगिरि बंगले में श्रद्धांजलि सभा के साथ संपन्न हुई। श्रद्धांजलि सभा में आद्य शंकराचार्य स्मारक समिति के अध्यक्ष महामंडलेश्वर विश्वेश्वरानंद गिरि ने कहा कि भारत और सनातन हिंदू धर्म को एकता के सूत्र में बांधने वाले भगवान शंकराचार्य शंकर के अवतार थे।
उन्होंने कहा कि दशनाम संन्यास परंपरा के प्रवर्तक आचार्य शंकर के पुरुषार्थ के कारण ही सनातन हिंदू धर्म की बौद्ध धर्म से रक्षा हो पाई। देश के चारों कोनों में शंकराचार्य पीठ स्थापित कर आद्य शंकराचार्य ने राष्ट्र को एकता के सूत्र में पिरोया। श्रीमहंत देवानंद सरस्वती ने कहा कि सनातन हिंदू धर्म और संन्यासी परंपरा सदैव आचार्य शंकर की ऋणी रहेगी। उन्होंने आततायियों से हिंदू धर्म की रक्षा कर संन्यासियों के अखाड़ों की परंपरा का सृजन किया। महामंडलेश्वर आनन्द चैतन्य ने कहा कि आचार्य शंकर ने देश की तीन बार पदयात्रा कर संपूर्ण भारत वर्ष में सनातन हिंदू धर्म के प्रचार प्रसार का जो जागरण किया उसके चलते ही बौद्ध धर्म के प्रभाव से हिंदू धर्म की रक्षा हुई।
महामंडलेश्वर प्रेमानंद, भारत माता मंदिर के श्रीमहंत ललितानंद गिरि ने वर्तमान समय में आचार्य शंकर के विचारों को जन जन तक पहुंचाने का आह्वान किया। इस अवसर पर श्रीमहंत विनोद गिरि, महंत मोहन दास रामायणी, स्वामी कमलानंद, स्वामी सदानंद, स्वामी शरदपुरी, महंत खेम सिंह, कोठारी मनोहरपुरी ने भी विचार रखे।